वीर अर्जुन नयी दिल्ली 06 - TopicsExpress



          

वीर अर्जुन नयी दिल्ली 06 सितम्बर 2013 VirArjun पहला पन्ना देश दुनिया खेल खिलाड़ी शिक्षा स्वास्थ्य धर्म संस्कृति बचपन पँचांग साहित्य आपके पत्र खुला पन्ना राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली उत्तर प्रदेश उत्तराखंड हरियाणा राजस्थान मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ चॅनेल्स संपादकीय द्रष्टीकोण समाचार राज्यनामा रविवारीय मनोरंजन वाणिज्य समाचार पत्र अपने आप को हमारे जानकारीपूर्ण मेलर्स से अपडेट करने के लिए कृपया अपना ई-मेल पता यहाँ दाखिल करें AddRemove शेयर बाज़ार निफ्टी 5878.30 (+26.80) 29 जनवरी 2013 बीएसई 19317.25 (+87.99) 29 जनवरी 2013 मौसम शहर icon सेo icon सेo दिल्ली 17.00 06.00 मुंबई 30.20 20.70 कोलकाता 26.40 20.90 चेन्नई 31.50 21.80 मुद्रा विनिमय दर icon विक्रेता क्रेता डॉलर 54.47 54.16 यूरो 71.09 71.82 पौंड 87.79 87.40 येन 0.65 0.64 अमेरिका के टॉप सीकेट प्रोजेक्ट उड़न तश्तरी प्रकाशित: 06 सितम्बर 2013 मीडिया ने 1950 के दशक में उड़न तश्तरी शब्द को सबसे लोकप्रिय मुहावरे यूएफओ के तौर पर प्रचारित किया था। तब से लेकर आज तक उड़न तश्तरी और एलियंस के बारे में तरह-तरह की खबरें आती रहीं हैं। शीतयुद्ध के दौरान यह प्रचारित किया गया था कि दूसरे ग्रहों से एलियन उड़न तश्तरी में सवार होकर धरती पर आते हैं। उड़न तश्तरी की इस धारणा को लेकर बाजार में साइंस फिक्शन की कॉमिक्स भी खूब बिकती थीं और यह आज भी जारी है। उस समय ऐसा नहीं था कि उड़न तश्तरी बनाने की कोशिश नहीं की गई हो। जी हां, कनाडा और अमेरिकी ने ऐसी ही कोशिश की थी। अमेरिकी सेना के रक्षा वैज्ञानिकों ने अपने सबसे सीकेट प्रोजेक्ट के तहत उड़न तश्तरी तैयार की थी और इसका परीक्षण भी किया था। इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में अमेरिका को कितनी सफलता मिली, यह जानना चाहिए। कनाडा ने 1952 में दरअसल कनाडा एक सुपरसोनिक और सीधे उंचाई में उड़ान और लैंडिंग करने वाला (वीटीओएल) फाइटर बॉम्बर बनाना चाहता था। उसने वीजेड-9 एवरोकार की डिजाइन तैयार की और इसका निर्माण भी कर लिया, लेकिन 1958 में इसका प्रयोग सफल नहीं रहा। यह उड़न तश्तरी केवल 3 फीट की ऊंचाई तक ही उड़ान भर सकी और इसकी स्पीड 35 मील प्रति घंटे से आगे कभी भी नहीं बढ़ सकी। कनाडा सरकार ने 1952 में इस प्रोजेक्ट को विचार बनाया था और1958 में वीजेड-9 एवरोकार बना ली। लेकिन यह परीक्षण में विफल रही। कनाडा की सरकार इस प्रोजेक्ट की बढ़ती लागत भी वहन करने की स्थिति में नहीं थी। कनाडा ने अपने इस प्रोजेक्ट को अमेरिकी सेना और एयरफोर्स को सौंप दिया। अमेरिकी सेना इसे 1958 से आगे ले जाना चाहती थी। इसकी डिजाइन में तीन टर्बोजेट इंजिन लगाए गए थे, जो एक टर्बोरेटर को चलाते थे। जब इसे नीचे की ओर डायरेक्ट किया जाता था तो टर्बोरेटर एक हवा का कुशन तैयार करता था। इसे ग्राउंड इफेक्ट के नाम से जाना जाता था। यह एयरक्राफ्ट को निचले स्तर पर उड़ने में मदद करता था। यह पीछे से एवरोकार को उड़ने के लिए आगे की ओर बढ़ाता था। सेना की हर ब्रांच की अपनी जरूरत होती है। थल सेना इसे सबसोनिक बनाना चाहती थी, ताकि यह जवानों को सभी इलाके में पहुंचाने में मदद कर सके और इससे किसी भी स्थल का निरीक्षण किया जा सके। जबकि एयरफोर्स चाहती थी कि इसे वीटीओएल जेट के रूप में बनाया जा सके। -सुभाष बुड़ावन वाला, 18, शांतिनाथ कार्नर, खाचरौद। पहला पन्ना | हमारे बारे मे | आप के सुझाव | विज्ञापन | हमारा पता कॉपीराइट © वीर अर्जुन सर्वाधिकार सुरक्षित netnivaran द्वारा डिजाइन और विकसित
Posted on: Fri, 06 Sep 2013 07:57:49 +0000

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