दंगे का शिकार राजेश वर्मा भी हुए और इकरार भाई भी, दोनों इमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे. पर सबसे ज्यादा परेशानी तब होती है जब कुछ पड़े लिखे लोग एक सम्प्रदाय के बारे में जार उगलते हैं. न हिन्दू की चिंता है इन्हें और न मुस्लिम की.. दाव पैर सिर्फ कुर्सी है वो भी खून से सनी हुई.. हाथो से उम्मीदों का शीशा टूट जाता है, पल भर में ही ख्वाबो से पीछा छुट जाता है, हम लोग थोड़ी देर लड़ना भूल जाये, इन सियासी सुरमाओ का पसीना छुट जाता है..
Posted on: Sun, 08 Sep 2013 10:59:43 +0000