अब भी मेरे कई दोस्त हैं, पर दोस्ती जाने कहाँ है, जब भी “traffic signal” पे मिलते हैं “Hi” हो जाती है, और अपने अपने रास्ते चल देते हैं, होली, दीवाली, जन्मदिन, नए साल पर बस SMS आ जाते हैं, शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं.. तब खेल भी अजीब हुआ करते थे, छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट केक, टिप्पी टीपी टाप. अब internet, office, से फुर्सत ही नहीं मिलती.. शायद ज़िन्दगी बदल रही है. जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर लिखा होता है… “मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते”
Posted on: Wed, 10 Jul 2013 09:02:40 +0000
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