JAMIA KE DESHBHAKT (Copied from Navbharattimes Bloger Bindas - TopicsExpress



          

JAMIA KE DESHBHAKT (Copied from Navbharattimes Bloger Bindas Bol) सितम्बर 2008, मैं नया नया नॉएडा आया था , पहली बार ऑफिस के लिए cab में बैठा तो पता चला पीछे बैठे दो co-employees जामिया नगर से बैठे थे !! शायद अपनी बातचीत में इतने उलझे हुए थे की उन्होंने इस बात को कोई तरजीह भी नहीं दी की मैं आगे की सीट पर आकर बैठ गया हूँ !! बाटला हाउस में हुआ इनकाउंटर एक हफ्ते पहले की ही बात रही होगी , खैर सफ़र शुरू हुआ और उनकी अक्खड़ बातचीत अक्षरशः मेरे कानों पर पड़ने लगी , कुछ ही मिनटों में ये तो समझ आ गया था की दोनों ही बन्दे मुस्लिम हैं पर जिस भ्रम को पाले मैं सालों से बैठा हुआ था की पढ़े लिखे बन्दे हैं , मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं , दुनिया की समझ रखते हैं कट्टरता से कोसों दूर होंगें , वो भ्रम मेरे अगले बीस मिनट के सफ़र में चकनाचूर हो गया !! बातचीत का मजमून जो भी हो , कही सुनी बातें हों, इनकाउंटर को झूठा बताते गढ़े हुए किस्से हों , पर जिन दो चीज़ों ने मुझे झकझोर के रख दिया वो था उनका विश्वास उन आतंवादियों के प्रति जिनका सिर्फ और सिर्फ मेरे इन सहकर्मियों से इतना सम्बन्ध था की वे भी मुस्लिम थे और ये भी ,शायद हमारे आपके लिए ये एक छोटा सा रिश्ता हो पर इस देश में एक बहुत बड़ा वर्ग है जिसके लिए सिर्फ ये एक रिश्ता सारे सच को झूठ बना सकता है और सारे झूठ को सच !! ऐसा अँधा रिश्ता जिसकी आंधी में देश, समाज ,भारतीयता यहाँ तक की मानवता भी नहीं टिक पाती !! दूसरा उनका पुलिस के प्रति अविश्वास , और उसकी भी ऐसी पराकाष्ठा की बातचीत में यहाँ तक कह गए की " अच्छा हुआ कम से कम उस एक इंस्पेक्टर को तो टपका ही दिया और छतों से खूब पत्थर भी फेंकें , चड्डी पकड़ के भागे साले" पुलिस पर तो हम भी ज्यादा भरोसा नहीं करते , पर उनकी बातचीत पुलिस पर कम इस देश पर, इसके एक राष्ट्ररूप अस्तित्व पर ही थूंकने जैसी लग रही थी , ऐसा लग ही नहीं रहा था की मेरे पीछे बैठे वे दो पढ़े लिखे नौजवान सच में मेरे ही देश के थे !! पहले उन आतंकवादियों को मासूम सिद्ध करना और फिर खुद स्वीकार करना की अच्छा हुआ उस इंस्पेक्टर को तो निपटा दिया , ये दोनों विरोधाभासी बातें उनके अन्दर के छुपे हुए इस पाप को उजागर कर रही थीं जिसकी चर्चा हम आये दिन करते हैं !!उन बीस मिनट के लिए भले ही मैं चुप रह गया क्योंकि अपनी ऊर्जा ऐसे अंधों पे खर्च करने से अच्छा है वो ऊर्जा बाकि बचे समाज को जागरूक करने में लगायी जाए !! ये बीस मिनट का सफ़र मुझे इसलिए भी याद रहेगा क्योंकि मेरे कई भ्रम , झूठ मूट के दिलबहलाऊ सेक्युलर सिद्धांत छिन्न भिन्न हो गए !! और अंत में , मैं और आप भले ही दिग्विजय सिंह जैसों को गालियाँ दें पर ये ही वे कुछ नेता हैं जो पेंसठ सालों से इन अंधों को बेवकूफ बनाते आ रहे हैं और कांग्रेस के इसी "बेवकूफ बनाओ खेल" का नतीजा है की आज तक मुस्लिम लीग जैसा जहरीला संगठन इस देश में खड़ा नहीं हो पाया जो शायद देश का ज्यादा बड़ा नुकसान कर सकता था !! और उन्हें भले ही चाहे अनपढ़ रह जाएँ , खाने को रोटी न मिले , पहनने को कपड़ा ना मिले , रईसी इसी बात की है की "हम चाहे तो सरकार बना दें चाहे तो गिरा दें" !! खुश रहने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है , आपका ऐसे ही खुश रहना देश के लिए स्वास्थ्यवर्धक है :)
Posted on: Fri, 26 Jul 2013 09:04:06 +0000

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