आज भी अनेक लोग 24x7 देहात और ग्रामों का रोना रोते रहते हैं. कुछ ग्रामों को स्वर्ग मानते हैं और शहरों को नरक...... मैं ग्रामों के शहरीकरण के पक्ष मैं हूँ. क्या रखा है भारत के ग्रामों मैं: वोही, भयंकर जातिवाद, दूरियां, फासले, नफरत, ७५ प्रतिशत मुकददमे ग्रामीण क्षेत्र के ही होते हैं. खासा रोमांटिसाइज़ किया हुआ है ग्रामों को. ग्रामों मैं कुछ आकर्षण बचा होता तो क्यों भागते लोग शहरों कि तरफ, शहरों मैं लोग समता और आज़ादी मैं सांस लेते हैं...विकास कि चमक दमक का आनंद लेते हैं. समानता है शहरों मैं. कुछ बुधजिवी पिकनिक के लिए गाओं से रिश्ता रखते हैं. नेता भी ग्राम ग्राम चिल्लाता रहता है और पूरा शहरी मजा ले रहा है. ग्रामों को चिड़ीघर या अजायबघर बना कर रखना चाहते हैं कुछ भलेमानुष. शहरों का विस्तार हो, ग्राम ख़त्म हों और उनका पूरा शहरीकरण हो. बिजली, पक्के मकान, टॉयलेट्स हों, संचार साधन हों. और शहरों से जुड़ाव हो. भारत जब तक ग्रामीण रहेगा तरक्की नहीं होगी. मॉडर्न बनो. शहरी बनो. सुख सुविधाओं का उपयोग करो. जातिवाद को ख़त्म करो. शहर का स्लम भी भारत के बहुत सारे ग्रामों से बेहतर है. ग्रामों पर साहित्य और कविता लिखना अच्छा है. लेकिन शहर मैं बसना और भी अच्छा.
Posted on: Wed, 13 Nov 2013 07:25:34 +0000
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