आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः । स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे नमः ॥ करोडों स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा आयु का एक क्षण भी नहीं पाया जा सकता । वह ( क्षण ) जिसके द्वारा व्यर्थ नष्ट किया जाता है , ऐसे नर-पशु को नमस्कार ।
Posted on: Mon, 19 Aug 2013 03:16:18 +0000
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