क्या सच में गृहस्थी में रहकर भक्ति करना असंभव है ? Explanation by Maa Premdhara:.एक बार की बात है पड़ोस की एक बहू ने मुझसे कहा कि मै अपनी सास से बहुत परेशान हूँ.वो बात-बात पर झगड़ा करती है.कभी मेरी cooking में दोष निकालती है तो कभी सफाई में दोष देखती है.कभी बच्चे के पालन-पोषण को लेकर ताने देते रहती है.समझ ही नही आता क्या करूँ.थोड़ी देर बाद उनकी सास मुझे मिली.मैंने पूछा कि कैसी हो?तो उन्होंने भी रोना शुरू कर दिया.अजीब आलसी बहू मिली है.घर का काम ठीक से नही करती.बच्चे को ठीक से नही खिलाती और जाने क्या-क्या. मैंने उनसे कहा कि अब आपकी उम्र हो गई है.कुछ भक्ति कर लो.शांति मिलेगी.ये सुनते ही सासू जी तपाक से बोल उठी कि अरे भई!हम तो गृहस्थ हैं.गृहस्थी में भला कहाँ भक्ति होगी.अब घर-बार देखे कि भगवान के बारे में सोचे.अब भई बहू जब समझदार हो जायेगी तब देखेंगे. उनकी बात सुनकर मै सोच में पड़ गई.क्या सच में गृहस्थी में रहकर भक्ति करना असंभव है?क्या भगवान से अपना संबंध बनाने के लिए अपना घर-बार छोडना जरूरी है?आमतौर पर लोग यही सोचते हैं कि गृहस्थी में रहकर हरिचिंतन नही किया जा सकता.तो आखिर क्या है भक्ति?किस तरह से हम अपने गृहस्थ धर्म को निभाते हुए भक्ति कर सकते हैं?
Posted on: Tue, 06 Aug 2013 08:59:11 +0000