खानाखराब: सोना कितना - TopicsExpress



          

खानाखराब: सोना कितना सोना है, अब जाग जाओ कमलेश सिंह | नई दिल्ली, 19 अक्टूबर 2013 | अपडेटेड: 15:40 IST टैग्स: उन्नाव| खजाना| खुदाई| सोने का खजाना| डौंडिया खेड़ा| चरणदास महंत| शोभन सरकार सपने देखा करें. सपने देखना ज़रूरी है. जिन्हें जिंदगी ने दिन में तारे दिखा दिए उनको नींद नहीं आती और सपने देखना भी एक सपना हो जाता है. पर सपने जरूरी हैं पूरे होने के लिए, जिसके लिए सोना जरूरी है. उत्तर प्रदेश में महंत सोभन सरकार सोने के दौरान सपने नहीं देखते, सपने के दौरान सोना देखते हैं. दिन के सपनों ने कईयों का दिवाला निकाला पर सोभन सरकार कहते हैं कि अगर उनकी बताई जमीन खोद दी तो भारतीय अर्थव्यवस्था की काली रात में दीवाली मनेगी, दीवाली से पहले. नेहरु जी कह गए देश में विज्ञान और तर्क को अपनाएं, तरक्की लाएं. छः दहाई की तरक्की के बाद फर्क ये है कि हमने विज्ञान से तर्क कर अंधविश्वास का एक ऐसा नर्क बनाया है जिस पर आधिकारिक तौर सोने के वर्क चढ़ाने की तैयारी में हैं. खुदाई की ज़रुरत ही नहीं थी. वित्त मंत्री निर्मल बाबा से उपाय पूछ लेते. उनके बताए प्याज के पकौड़े काले कुत्ते को खिला देते, रूपया मजबूत हो जाता. लेकिन, भारत सरकार एक साधु के सपने को मूर्त रूप दे रही है. नेहरू के साइंसी सपने कैसे पलेंगे! उन्नाव जिले के डौंडिया खेड़ा गांव में बैंस राजा राम बख्श सिंह के किले के खंडहर में एक मंदिर है, जिसके पास स्वामी सोभन सरकार का डेरा है. स्वामीजी को स्वप्न में जमीन के अन्दर सोना दिखा तो उन्होंने राष्ट्रपति से लेकर कलेक्टर के चपरासी तक को चिट्ठी लिख मारी. जवाब नहीं आया. फिर देश पर आर्थिक संकट छाया तो इन्होंने एक नेता को भरमाया. चरण दास महंत केंद्र में मंत्री हैं. मिले महंत से महंत, हुआ दुविधा का अंत. मंत्री ने पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ड्यूटी लगा दी. अब वहां खुदाई चल रही है. स्वामीजी कहते हैं वहां इतना सोना छुपा है कि निकल जाए तो छुपाए न बने. और नहीं निकला तो पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग मुंह कहां छुपाएगा? वैज्ञानिक सोच और विवेक तो उसी गड्ढे में दफन हो जाएंगे. किसी कवि ने कहा था कि घर-घर महुए नहीं गलेंगे तो बापू के दुधमुंहे सपने कैसे पलेंगे. आज आलम ये है कि घर-घर धूमन नहीं जलेंगे तो नेहरु के साइंसी सपने कैसे पलेंगे. धर्मांधता की कोई सीमा तो हो! खुदा की ख़ुदाई में खुदी को बुलंद क्यों करना, खुदे की खुदाई बहुत ही आसान है. होम्योपैथी को विज्ञान भले ना माने, सरकार आयुष विभाग से अनुदान दिलाती है. कॉलेज-अस्पताल हैं, डिग्री ले सकते हैं, खुराक दे सकते हैं. दुनिया विश्वास पर टिकी है, विश्वास कीजिए और ठीक हो जाइए. इसरो के वैज्ञानिक अंतरिक्ष में सैटेलाइट प्रक्षेपण के पहले बाबाओं का आशीर्वाद लेते हैं. जो अग्नि मिसाइल छोड़ते हैं, वो पहले नारियल फोड़ते हैं. थाने-थाने में हनुमानजी विराजते हैं. धर्म जीवन का अंग है, आपत्ति थोड़े है? लेकिन धर्मान्धता के घोड़े पर कोई तो लगाम हो. बिल्ली के रास्ता काटने का मतलब तो यही है कि बिल्ली को सड़क के उस पार जाना है. पर इस पार आप ठिठक जाते हैं कि कोई दूसरा पार हो जाए तो बिल्ली का रास्ता काटना कट जाए. एक फिल्म ने संतोषी माता नाम का नया अवतार दे दिया. वैष्णो देवी और अमरनाथ के इतिहास से क्या मतलब? ग्रंथ के भीतर कौन जाए, धर्म का अर्थ कौन समझे, किसी से सुन लिया और चल पड़े श्रवण कुमार. सुने-सुनाए पर जी रहे हैं हम निर्मल बाबा पुदीने की चटनी चटा रहे हैं, आसाराम आराम से घुट्टी पिला रहे हैं, जीते जी मारने वालों का दावा है कि मुर्दे जिला रहे हैं. क्योंकि हम खा रहे हैं, पी रहे हैं, सुने-सुनाए पर जी रहे हैं. एक बेचारी बुढ़िया जब डायन बताकर मार दी जाती है, उसकी मौत पर च्च..च्च.. करते हैं पर डायन होने पर डाउट नहीं होता! भूत-प्रेत पर यकीन करते हैं, तो डायन पर क्यों नहीं, है न? चक्रवात कभी ईश्वर का प्रकोप हुआ करता था. अब सैटेलाईट से हम उसके आंख, कांख और इरादे भांप लेते हैं. चक्रवात के दुश्चक्र से लाखों की जान बचा ले गए पर सुने-सुनाए पर यकीन कर सौ मारे गए. दतिया के रतनगढ़ में एक पुल पर. चक्रवात के मामले में प्रशासन दुरुस्त था पर बच गए तो ऊपरवाले की असीम कृपा थी. पुल पर प्रशासन सुस्त था पर मर गए तो दोष नीचे वाले का. जो अच्छा हुआ तो बाबाजी की कृपा, जो बुरा हुआ तो दुनिया बुरी. कोई हमारी सोई हुई दुम हिला दे होने के बाद जो होता है वह अनुभव है. जो होता नहीं उसका अनुभव होते देखना है तो पधारो म्हारे देस. हम ने धर्म और संस्कृति का ऐसा लच्छा बनाया है कि अच्छे-अच्छों के तलवे तर हो जाएं पसीने में. इस डोर को सुलझाने में, इसका सिरा पाने में. हम सिरा ढूंढते ही नहीं, क्योंकि ढूंढने में सिर लगाना पड़ता है, सुलझाने में हाथ. हम तो सिर धुनते हैं. अगर अपने बाबा जी आसाराम टाइप निकल गए तो हाथ मसलते हैं. क्योंकि सर है धुनने के लिए, हाथ मसलने के लिए. और सपने जरूरी हैं नींद में चलने के लिए. फैज साहेब माफ़ करें पर कहना ज़रूरी है कि कोई हमको एहसास-ए-जिल्लत दिला दे, कोई हमरी सोई हुई दुम हिला दे. और भी... aajtak.intoday.in/story/unnao-golden-treasure-its-time-to-wake-up--1-744929.html
Posted on: Sun, 20 Oct 2013 12:31:02 +0000

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