जब चाँद का धीरज छूट गया - TopicsExpress



          

जब चाँद का धीरज छूट गया । वह रघुनन्दन से रूठ गया । बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है । स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है । तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है । हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है । सीता के रूप को हम ही ने सँभारा है । चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है । जिस वक़्त याद में सीता की , तुम चुपके - चुपके रोते थे । उस वक़्त तुम्हारे संग में बस , हम ही जागते होते थे । संजीवनी लाऊंगा , लखन को बचाऊंगा ,. हनुमान ने तुम्हे कर तो दिया आश्वश्त मगर अपनी चांदनी बिखरा कर, मार्ग मैंने ही किया था प्रशस्त । तुमने हनुमान को गले से लगाया । मगर हमारा कहीं नाम भी न आया । रावण की मृत्यु से मैं भी प्रसन्न था । तुम्हारी विजय से प्रफुल्लित मन था । मैंने भी आकाश से था पृथ्वी पर झाँका । गगन के सितारों को करीने से टांका । सभी ने तुम्हारा विजयोत्सव मनाया। सारे नगर को दुल्हन सा सजाया । इस अवसर पर तुमने सभी को बुलाया । बताओ मुझे फिर क्यों तुमने भुलाया । क्यों तुमने अपना विजयोत्सव अमावस्या की रात को मनाया ? अगर तुम अपना उत्सव किसी और दिन मानते । आधे अधूरे ही सही हम भी शामिल हो जाते । मुझे सताते हैं , चिड़ाते हैं लोग । आज भी दिवाली अमावस में ही मनाते हैं लोग । तो राम ने कहा, क्यों व्यर्थ में घबराता है ? जो कुछ खोता है वही तो पाता है । जा तुझे अब लोग न सतायेंगे । आज से सब तेरा मान ही बढाएंगे । जो मुझे राम कहते थे वही , आज से रामचंद्र कह कर बुलायेंगे ।
Posted on: Fri, 13 Sep 2013 13:39:58 +0000

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