"तुम" मेरे शरीर की परछाई हो तुम, अंग अंग मे मेरे समाई हो तुम, एक रहस्यमयी कहानी हो तुम, नदिया मे जैसे बहता हुआ पानी हो तुम, किसी कवि की कल्पना हो तुम, मेरी ज़िंदगी का हसीन सपना हो तुम, किसी दर्द भरी गजल का साज हो तुम, कोई अनसुलझा हुआ राज हो तुम, तपते हुये सहरा मे कोई गुलाब हो तुम, मदहोश कर दे वो शराब हो तुम, किसी वीणा की तार हो तुम, किसी पायल की मधुर झंकार को तुम, किसी मंदिर की मूरत हो तुम, देखना चाहूँ जिसे बार बार,वो प्यारी सूरत हो तुम, पत्झर मे जैसे बहार हो तुम, पार लगा दे नईया को जो वो पतवार हो तुम, किसी झील का किनारा हो तुम, आसमान मे चमकता कोई सितारा हो तुम, किसी बदक की मधुर शहनाई हो तुम, नापा न जा सके जिसे वो गहराई हो तुम, फूलों के जैसी कोमल हो तुम, पारियों के जैसी चंचल हो तुम, दूध के जैसी गोरी हो तुम, जैसे चाँद की चकोरी हो तुम, गौरव के लिए क्या हो तुम,ये तुम्हें क्या बताए, बार बार सिर्फ येही बात दोहराए, की मेरे शरीर की परछाई हो तुम, अंग अंग मे मेरे समाई हो तुम, गौरव महाजन
Posted on: Fri, 19 Jul 2013 17:33:36 +0000
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