तेरी आँखों को जब देखा कमल कहने को जी चाहामैं शायर तो नहीं ग़ज़ल कहने को जी चाहातेरा नाज़ुक बदन छू कर हवाएं गीत गाती हैंबहारें देख कर तुझको नया जादू जगाती हैंतेरे होंठों को कलियों का बदल कहने को जी चाहामैं शायर तो नहीं...इजाज़त हो तो आँखों में छुपा लूं ये हंसी जलवातेरे रुखसार पे कर लें मेरे लब प्यार का सजदातुझे चाहत के ख़्वाबों का महल कहने को जी चाहामैं शायर तो नहीं...
Posted on: Wed, 31 Jul 2013 17:19:51 +0000
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