देश में मुंबई महिलाओं के लिए सबसे सेफ शहर माना जाता है, जहां देर रात में काम से लौटती महिला से 'इतनी रात में क्या कर रही थी' जैसे सवाल नहीं पूछे जाते। लेकिन इस सेफ सिटी में भी रेप हुआ है, एक भयानक बलात्कार, एक औरत की अस्मिता की दिन दहाड़े लूट। शहर कोई भी हो, बस इमारतें छोटी और बड़ी होती हैं लेकिन मानसिकता में रत्तीभर बदलाव नहीं है। आखिर ऐसी कौनसी छड़ी घुमायु कि मेरे लिए यह समाज सुरक्षित हो जाए? ऐसा क्या करूं कि मेरे सीने से पहले मेरी काबीलियत और मेरी मेहनत पर तेरी नजर जाए? आखिर क्यों मेरे कपड़े चीरने से ही तेरी मर्दानगी का दंभ संतुष्ट हो पाता है? क्या तेरी भोग विलासिता की कीमत हमेशा मेरे सपने, मेरी आजादी, मेरी इच्छाओं, मेरी जिंदगी और मेरे शरीर को नोंचने से ही परिपूर्ण होगी? और अगर हां, तो पहले अपनी मां का आंचल नोंच जिसने तुझ जैसे दंभी को जन्म दिया। अपनी बहन के शरीर पर निगाह डाल, जिसे तू घर में बंद कर के उसके सुरक्षित होने की गलतफहमी में जीता है।
Posted on: Sat, 24 Aug 2013 15:13:50 +0000
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