नरेन्द्र - TopicsExpress



          

नरेन्द्र मोदी hi.wikipedia.org/s/af मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से नरेन्द्र मोदी नरेन्द्र मोदी नरेन्द्र मोदी का अधिकृत चित्र पदस्थ कार्यभार ग्रहण 7 अक्तूबर, 2001 निर्वाचन क्षेत्र मणीनगर जन्म 17 सितम्बर 1950 (आयु 63) वड़नगर, जिला महेसाणा, गुजरात, भारत राजनैतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी जीवन संगी अविवाहित आवास गाँधीनगर, गुजरात विद्या अर्जन गुजरात विश्वविद्यालय[1] धर्म हिन्दू वेबसाइट narendramodi.in नरेन्द्र मोदी (पूरा नाम: नरेन्द्र दामोदरदास मोदी, गुजराती: નરેંદ્ર દામોદરદાસ મોદી; जन्म: 17 सितम्बर, 1950) एक ऐसे राजनेता हैं जो 7 अक्तूबर 2001 से अब तक लगातार गुजरात राज्य के मुख्यमन्त्री हैं। अक्तूबर 2001 में केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमन्त्री बने थे। उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने पहले दिसम्बर 2002 और उसके बाद दिसम्बर 2007 के विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल किया। नरेन्द्र भाई मोदी विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं और वर्तमान समय में देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं। मोदी के नेतृत्व में 2012 में हुए गुजरात विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया।[2] बेहद साधारण परिवार में जन्में नरेन्द्र विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये तथा अविवाहित रहकर अभी तक राजनीति में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम किया फिर संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये। सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा में लालकृष्ण आडवाणी के साथ रहे नरेन्द्र मोदी पहले भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मन्त्री फिर महामन्त्री बनाये गये। केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद उन्हें गुजरात राज्य की कमान सौंपी गयी। तब से लेकर अब तक वे गुजरात के मुख्यमन्त्री बने हुए हैं। गोआ में भाजपा कार्यसमिति द्वारा नरेन्द्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव अभियान की कमान सौंपी गयी थी।[3] उसके बाद दिल्ली में उन्हें अगले लोकसभा चुनाव के लिये पार्टी की ओर से प्रधानमन्त्री पद का अधिकृत उम्मीदवार घोषित कर दिया।[4] मोदी ने प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद चुनाव अभियान की कमान राजनाथ सिंह को सौंप दी और प्रत्याशी के रूप में पूरे देश का दौरा शुरू कर दिया। सर्च इंजन गूगल इण्डिया द्वारा 1 मार्च 2013 से 31 अगस्त 2013 के बीच कराये गये सर्वेक्षण के अनुसार इण्टरनेट पर सर्च किये जाने वाले भारत के 10 प्रमुख राजनेताओं में नरेन्द्र मोदी पहले स्थान पर हैं।[5] टाइम ने मोदी को पर्सन ऑफ़ द इयर 2013 के 42 उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया है।[6] अनुक्रम [छुपाएँ] 1 निजी जीवन 2 प्रारम्भिक सक्रियता और राजनीति 3 गुजरात के मुख्यमन्त्री के रूप में 4 गुजरात के विकास की योजनाएँ 4.1 मोदी का वन बन्धु विकास कार्यक्रम 5 आतंकवाद पर मोदी के विचार 6 विवाद एवम् आलोचनाएँ 6.1 स्वतन्त्रता दिवस पर नयी परम्परा की शुरुआत 7 प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार 8 सन्दर्भ 9 बाहरी कड़ियाँ 10 बाह्य सूत्र निजी जीवन नरेन्द्र मोदी का जन्म तत्कालीन बॉम्बे राज्य के महेसाना जिले के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में हुआ।[7] वह शाकाहारी हैं।[8] भारत पाकिस्तान के बीच द्वितीय युद्ध के दौरान अपने तरुणकाल में उन्होंने स्वेच्छा से रेलवे स्टेशनों पर सफ़र कर रहे सैनिकों की सेवा की।[9] युवावस्था में वह छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए और साथ ही साथ भ्रष्टाचार विरोधी नव निर्माण आन्दोलन में हिस्सा लिया। एक पूर्णकालिक आयोजक के रूप में कार्य करने के पश्चात् उन्हें भारतीय जनता पार्टी में संगठन का प्रतिनिधि मनोनीत किया गया।[10] किशोरावस्था में अपने भाई के साथ एक चाय की दुकान चला चुके मोदी ने अपनी स्कूली शिक्षा वड़नगर में पूरी की।[7] वह गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में परास्नातक (एम॰एससी॰) हैं।[11] प्रारम्भिक सक्रियता और राजनीति नरेन्द्र जब विश्वविद्यालय के छात्र थे तभी से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित जाने लगे थे। इस प्रकार उनका जीवन संघ के एक निष्ठावान प्रचारक के रूप में प्रारम्भ हुआ [11][12] उन्होंने शुरुआती जीवन से ही राजनीतिक सक्रियता दिखलायी और भारतीय जनता पार्टी का आधार मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभायी। गुजरात में शंकरसिंह वघेला का जनाधार मजबूत बनाने में नरेन्द्र मोदी की ही रणनीति थी। अप्रैल 1990 में जब केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ, मोदी की मेहनत रंग लायी जब गुजरात में 1995 के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने बलबूते दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। इसी दौरान दो राष्ट्रीय घटनायें और इस देश में घटीं। पहली घटना थी सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा जिसमें आडवाणी के प्रमुख सारथी की मूमिका में नरेन्द्र का मुख्य सहयोग रहा। इसी प्रकार कन्याकुमारी से लेकर सुदूर उत्तर में स्थित काश्मीर तक की मुरली मनोहर जोशी की दूसरी रथ यात्रा भी नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। इन दोनों यात्राओं ने मोदी का राजनीतिक कद ऊँचा कर दिया जिससे चिढ़कर शंकरसिंह वघेला ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। जिसके परिणामस्वरूप केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमन्त्री बना दिया गया और नरेन्द्र मोदी को दिल्ली बुलाकर भाजपा में संगठन की दृष्टि से केन्द्रीय मन्त्री का दायित्व सौंपा गया। 1995 में राष्ट्रीय मन्त्री के नाते उन्हें पाँच प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। 1998 में उन्हें पदोन्नत करके राष्ट्रीय महामन्त्री (संगठन) का उत्तरदायित्व दिया गया। इस पद पर वे अक्तूबर 2001 तक काम करते रहे। भारतीय जनता पार्टी ने अक्तूबर 2001 में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के मुख्यमन्त्री पद की कमान नरेन्द्र भाई मोदी को सौंप दी। गुजरात के मुख्यमन्त्री के रूप में 2012 में जामनगर की एक चुनावी सभा को सम्बोधित करते हुए नरेन्द्र मोदी का चित्र नरेन्द्र मोदी अपनी विशिष्ट जीवन शैली के लिये समूचे राजनीतिक हलकों में जाने जाते हैं। उनके व्यक्तिगत स्टाफ में केवल तीन ही लोग रहते हैं कोई भारी भरकम अमला नहीं होता। लेकिन कर्मयोगी की तरह जीवन जीने वाले मोदी के स्वभाव से सभी परिचित हैं इस नाते उन्हें अपने कामकाज को अमली जामा पहनाने में कोई दिक्कत पेश नहीं आती। [13] उन्होंने गुजरात में कई ऐसे हिन्दू मन्दिरों को भी ध्वस्त करवाने में कभी कोई कोताही नहीं बरती जो सरकारी कानून कायदों के मुताबिक नहीं बने थे। हालाँकि इसके लिये उन्हें विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों का कोपभाजन भी बनना पड़ा परन्तु उन्होंने इसकी रत्ती भर भी परवाह नहीं की; जो उन्हें उचित लगा करते रहे।[14] वे एक लोकप्रिय वक्ता हैं जिन्हें सुनने के लिये बहुत भारी संख्या में श्रोता आज भी पहुँचते हैं। वे स्वयं को पण्डित जवाहरलाल नेहरू के मुकाबले सरदार वल्लभभाई पटेल का असली वारिस सिद्ध करने में रात दिन एक कर रहे हैं। धोती कुर्ता सदरी के अतिरिक्त वे कभी कभार सूट भी पहन लेते हैं। गुजराती, जो उनकी मातृभाषा है के अतिरिक्त वे राष्ट्रभाषा हिन्दी में ही बोलते हैं। अब तो उन्होंने अंग्रेजी में भी धाराप्रवाह बोलने की कला सीख ली है।[15] मोदी के नेतृत्व में 2012 में हुए गुजरात विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत[2] प्राप्त किया। भाजपा को इस बार 115 सीटें मिलीं। गुजरात के विकास की योजनाएँ मुख्यमन्त्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के विकास[16] के लिये जो महत्वपूर्ण योजनाएँ प्रारम्भ कीं व उन्हें क्रियान्वित कराया उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है- पंचामृत योजना[17] - राज्य के एकीकृत विकास की पंचायामी योजना, सुजलाम् सुफलाम् - राज्य में जल स्रोतों का उचित व समेकित उपयोग जिससे जल की बरवादी को रोका जा सके, कृषि महोत्सव – उपजाऊ भूमि के लिये शोध प्रयोगशालाएँ, चिरंजीवी योजना – नवजात शिशु की मृत्युदर में कमी लाने हेतु, मातृ-वन्दना – जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु, बेटी बचाओ – भ्रूण हत्या व लिंगानुपात पर अंकुश हेतु, ज्योतिग्राम योजना – प्रत्येक गाँव में बिजली पहुँचाने हेतु, कर्मयोगी अभियान – सरकारी कर्मचारियों में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा जगाने हेतु, कन्या कलावाणी योजना – महिला साक्षरता व शिक्षा के प्रति जागरुकता, बालभोग योजना – निर्धन छात्रों को विद्यालय में दोपहर का भोजन,[18] मोदी का वन बन्धु विकास कार्यक्रम उपरोक्त विकास योजनाओं के अतिरिक्त मोदी ने आदिवासी व वनवासी क्षेत्र के विकास हेतु गुजरात राज्य में वनबन्धु विकास[19] हेतु एक अन्य दस सूत्री कार्यक्रम भी चला रक्खा है जिसके सभी 10 सूत्र निम्नवत हैं: 1-पाँच लाख परिवारों को रोजगार, 2-उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता, 3-आर्थिक विकास, 4-स्वास्थ्य, 5-आवास, 6-साफ स्वच्छ पेय जल, 7-सिंचाई, 8-समग्र विद्युतीकरण, 9-प्रत्येक मौसम में सड़क मार्ग की उपलब्धता और 10-शहरी विकास। आतंकवाद पर मोदी के विचार 18 जुलाई 2006 को मोदी ने एक भाषण में आतंकवाद निरोधक अधिनियम जैसे आतंकवाद-विरोधी विधान लाने के विरूद्ध उनकी अनिच्छा को लेकर भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आलोचना की। मुंबई की उपनगरीय रेलों में हुए बम विस्फोटों के मद्देनज़र उन्होंने केंद्र से राज्यों को सख्त कानून लागू करने के लिए सशक्त करने की माँग की।[20] उनके शब्दों में - आतंकवाद युद्ध से भी बदतर है। एक आतंकवादी के कोई नियम नहीं होते। एक आतंकवादी तय करता है कि कब, कैसे, कहाँ और किसको मारना है। भारत ने युद्धों की तुलना में आतंकी हमलों में अधिक लोगों को खोया है।[20] नरेंद्र मोदी ने कई अवसर पर कहा था कि यदि भाजपा केंद्र में सत्ता में आई, तो वह सन् 2004 में उच्चतम न्यायालय द्वारा अफज़ल गुरु को फाँसी दिए जाने के निर्णय का सम्मान करेगी। भारत के उच्चतम न्यायालय ने अफज़ल को 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले के लिए दोषी ठहराया था एवं 9 फ़रवरी 2013 को तिहाड़ जेल में उसे लटकाया गया।[21] विवाद एवम् आलोचनाएँ नरेन्द्र मोदी 23 दिसम्बर 2007 की प्रेस कांफ्रेंस में 27 फरवरी 2002 को अयोध्या से गुजरात वापस लौट कर आ रहे कारसेवकों को गोधरा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में एक हिंसक भीड़ द्वारा आग लगाकर जिन्दा जला दिया गया। इस हादसे में 59 कारसेवक मारे गये थे।[22] रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप समूचे गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। मरने वाले 1180 लोगों में अधिकांश संख्या अल्पसंख्यकों की थी। इसके लिये न्यू यॉर्क टाइम्स ने मोदी प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया।[15] कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने नरेन्द्र मोदी के इस्तीफे की माँग की।[23][24] मोदी ने गुजरात की दसवीं विधान सभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।[25][26] राज्य में दोबारा चुनाव हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल 182 सीटों में से 127 सीटों पर जीत हासिल की। अप्रैल 2009 में भारत के उच्चतम न्यायालय ने विशेष जाँच दल भेजकर यह जानना चाहा कि कहीं गुजरात के दंगों में नरेन्द्र मोदी की साजिश तो नहीं।[15] यह विशेष जाँच दल दंगों में मारे गये काँग्रेसी सांसद ऐहसान ज़ाफ़री की विधवा ज़ाकिया ज़ाफ़री की शिकायत पर भेजा गया था।[27] दिसम्बर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने एस०आई०टी० की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि इन दंगों में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।[28] उसके बाद फरबरी 2011 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह आरोप लगाया कि रिपोर्ट में कुछ तथ्य जानबूझ कर छिपाये गये हैं[29] और सबूतों के अभाव में नरेन्द्र मोदी को अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता।[30][31] इंडियन एक्सप्रेस ने भी यह लिखा कि रिपोर्ट में मोदी के विरुद्ध साक्ष्य न मिलने की बात भले ही की हो किन्तु अपराध से मुक्त तो नहीं किया।[32] द हिन्दू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ़ इतनी भयंकर त्रासदी पर पानी फेरा अपितु प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न गुजरात के दंगों में मुस्लिम उग्रवादियों के मारे जाने को भी उचित ठहराया।[33] भारतीय जनता पार्टी ने माँग की कि एस०आई०टी० की रिपोर्ट को लीक करके उसे प्रकाशित करवाने के पीछे सत्तारूढ काँग्रेस पार्टी का राजनीतिक स्वार्थ है इसकी भी उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच होनी चाहिये।[34] सुप्रीम कोर्ट ने बिना कोई फैसला दिये अहमदाबाद के ही एक मजिस्ट्रेट को इसकी निष्पक्ष जाँच करके अबिलम्ब अपना निर्णय देने को कहा।[35] अप्रैल 2012 में एक अन्य विशेष जाँच दल ने फिर ये बात दोहरायी कि यह बात तो सच है कि ये दंगे भीषण थे परन्तु नरेन्द्र मोदी का इन दंगों में कोई भी प्रत्यक्ष हाथ नहीं।[36] 7 मई 2012 को उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जज राजू रामचन्द्रन ने यह रिपोर्ट पेश की कि गुजरात के दंगों के लिये नरेन्द्र मोदी पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 ए (1) (क) व (ख), 153 बी (1), 166 तथा 505 (2) के अन्तर्गत विभिन्न समुदायों के बीच बैमनस्य की भावना फैलाने के अपराध में दण्डित किया जा सकता है।[37] हालँकि रामचन्द्रन की इस रिपोर्ट पर विशेष जाँच दल (एस०आई०टी०) ने आलोचना करते हुए इसे दुर्भावना व पूर्वाग्रह से परिपूर्ण एक दस्तावेज़ बताया।[38] अभी हाल ही में 26 जुलाई 2012 को नई दुनिया के सम्पादक शाहिद सिद्दीकी को दिये गये एक इण्टरव्यू में नरेन्द्र मोदी ने साफ कहा-2004 में मैं पहले भी कह चुका हूँ, 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के लिये मैं क्यों माफ़ी माँगूँ? यदि मेरी सरकार ने ऐसा किया है तो उसके लिये मुझे सरे आम फाँसी दे देनी चाहिये। मुख्यमन्त्री ने गुरुवार को नई दुनिया से फिर कहा- “अगर मोदी ने अपराध किया है तो उसे फाँसी पर लटका दो। लेकिन यदि मुझे राजनीतिक मजबूरी के चलते अपराधी कहा जाता है तो इसका मेरे पास कोई जबाव नहीं है। यह कोई पहली बार नहीं है जब मोदी ने अपने बचाव में ऐसा कहा हो। वे इसके पहले भी ये तर्क देते रहे हैं कि गुजरात में और कब तक गुजरे ज़माने को लिये बैठे रहोगे? यह क्यों नहीं देखते कि पिछले एक दशक में गुजरात ने कितनी तरक्की की? इससे मुस्लिम समुदाय को भी तो फायदा पहुँचा है। लेकिन जब केन्द्रीय क़ानून मन्त्री सलमान खुर्शीद से इस बावत पूछा गया तो उन्होंने दो टूक जबाव दिया-पिछले बारह वर्षों में यदि एक बार भी गुजरात के मुख्यमन्त्री के खिलाफ़ एफ०आई०आर० दर्ज़ नहीं हुई तो आप उन्हें कैसे अपराधी ठहरा सकते हैं? उन्हें कौन फाँसी देने जा रहा है?[39] स्वतन्त्रता दिवस पर नयी परम्परा की शुरुआत स्वतन्त्र भारत के इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ है कि जहाँ एक ओर प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने पन्द्रह अगस्त को स्वतन्त्रता दिवस पर परम्परागत तरीके से दिल्ली के लाल किले से देश को सम्बोधित किया वहीं दूसरी ओर भुज प्रान्त में लालन कालेज के मैदान से नरेन्द्र मोदी ने अपनी वेदना व्यक्त करते हुए[40] केन्द्र सरकार पर सीधा आरोप लगाया कि यह सरकार अब केवल एक परिवार का गुणगान करने वाली मशीनरी बनकर रह गयी है। उसे न तो देश के आम आदमी की कोई चिन्ता है और न ही देश की आन्तरिक व बाह्य सुरक्षा की। बीबीसी सम्वाददाता ज़ुबैर अहमद ने तो इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए साफ साफ शब्दों में लिखा-अगर भारत में अमरीका की तरह राष्ट्रपति शासन प्रणाली होती तो आज नरेन्द्र मोदी अपने भाषण के आधार पर मनमोहन सिंह से बाज़ी मार ले जाते और अगले साल चुनाव के बाद उनके समर्थकों का सपना भी साकार हो जाता। गुजरात के मुख्यमन्त्री का आज का दबंग और अभूतपूर्व कदम अगले साल के लिए एक ड्रेस रिहर्सल कहा जा सकता है।[41] यद्यपि मोदी ने इसकी सूचना पहले से ही मीडिया के माध्यम से पूरे देश में प्रसारित कर दी थी लेकिन मोदी के इस दुस्साहस पूर्ण कृत्य का जब मीडिया ने तुलनात्मक तरीके से सीधा प्रसारण किया तो कांग्रेस के कई नेताओं ने जहाँ एक ओर मोदी की तीखी आलोचना की और माफी माँगने तक को कहा[42] वहीं भाजपा के शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मोदी को संयम बरतने की सीख भी दे डाली। प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को 13 सितम्बर 2013 को हुई संसदीय बोर्ड की बैठक में आगामी लोकसभा चुनावों के लिये प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। इस अवसर पर पार्टी के शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणी मौजूद नहीं रहे और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इसकी घोषणा की।[43] इस अवसर पर मोदी ने कहा कि मुझे बहुत बड़ी जिम्मेदारी मिली है। यह खबर सुनते ही देश भर के भाजपा कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाना शुरू कर दिया।[44] प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने के बाद मोदी की पहली रैली हरियाणा प्रान्त के रिवाड़ी शहर में हुई। रैली को सम्बोधित करते हुए उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश को आपस में लड़ने की बजाय गरीबी और अशिक्षा से लड़ना चाहिये।[45] सन्दर्भ वापिस ऊपर जायें ↑ Narendra Modi - Biography. 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Posted on: Thu, 28 Nov 2013 13:38:07 +0000

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