पिछले एक हफ्ते से यूपी - TopicsExpress



          

पिछले एक हफ्ते से यूपी लोक सेवा आयोग के नये आरक्षण प्रारूप को लेकर एक 'आन्दोलन ' चल रहा है , आन्दोलित लोगों ने बसें तोड़ दीं,पथराव किया और पूरे क्षेत्र में अराजकता फैली रही.. यह सब देख कर मन उदास हो गया ..५ वर्ष पहले ३-४ महीने तक मैंने आयोग के भ्रष्टाचार के खिलाफ इससे बहुत बड़े स्वतः स्फूर्त आंदोलन का नेतृत्व किया था जिसे सभी वर्गों का समर्थन था .. अनेक जुलूस व घेराव का आयोजन हुआ पर एक भी पत्थर नहीं चला ..न इलाहाबाद में और न दो -२ बार लखनऊ में विधानसभा घेरने के दौरान .. शायद नेतृत्व का अभाव या राजनीतिज्ञों की मौजूदगी ने यह स्थिति बनाई हो , जो भी हो आंदोलनकारियों को समझना होगा कि इस तरह की अराजकता उन्हें लक्ष्य से दूर ही ले जाएगी ... अब प्रश्न है कि १९९४ में बने एक तरीके को अब क्यूँ लागू किया गया ?इसके पीछे कोई सियासी पहलू तो नहीं हैं ?..इससे बड़े प्रश्न फिजा में हैं .. १. क्या आरक्षण को प्रत्येक स्तर पर लागू करना सुप्रीम कोर्ट व प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है ? २. जब अंतिम स्थिति में आरक्षण का लाभ नियमानुसार मिलता था , तो इस नये नियम को लाने का औचित्य क्या था ? ३. आरक्षण समर्थक कहते हैं कि पुराने नियम से अनारक्षित वर्ग को ५०% आरक्षण मिल जाता था , जबकि विरोधी आंकड़ा देते हुए इसे सफ़ेद झूठ बताते हैं क्योंकि अंतिम रूप से आरक्षित वर्ग का चयन हर बार ७०% पदों पर हुआ है .. उनका आरोप है , त्रि स्तरीय आरक्षण पूरी तरह से सामान्य वर्ग को बाहर ही कर देगी .. ४. आंदोलन कारी एक जाति विशेष के लिए आयोग के झुकाव पर ज्यादा भडके हैं , संयोग है कि इस समय सचिव व अध्यक्ष दोनों उसी जाति के हैं यह मामला अब कोर्ट में है , कोर्ट को स्वतः संज्ञान लेकर इस संवेदनशील मामले को प्राथमिकता के आधार पर निबटाना चाहिए ..बाबा साहेब अम्बेडकर ने जब १० वर्ष के लिए आरक्षण का प्रस्ताव किया था तब उनके दिमाग में बिल्कुल भी नहीं था कि ६५ साल में भी आरक्षण बराबरी स्थापित नहीं कर पायेगा ..हमारे समाज को इन मसलों पर एक जुटता प्रदर्शित करते हुए चीजों को अराज़क होने से बचाना होगा .. मैं आशावादी हूँ , कि इस मसले का सम्यक हल निकल ही आएगा !
Posted on: Tue, 16 Jul 2013 04:52:43 +0000

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