मेरे नैनो के दीदों को, अति - TopicsExpress



          

मेरे नैनो के दीदों को, अति की वो सुहाई हो..... जो खनकें चूड़ियाँ इस घर, में वो तेरी कलाई हो; मैं सुबह जो उठूँ, आवाज वो तूने लगाई हो; वो पहली चाय की प्याली, तेरे होंठों से आई हो; वो सत्तू से भरी घाटी, मुझे जूठी खिलाई हो । मैं खेतों पर चलूँ, तो मुस्कराहट ऐसी आई हो; मेरे नैनो के दीदों को, अति की वो सुहाई हो; वो तपती धूप में मेरे लिए, बस खाना लाई हो; अपने नर्म हांथो से, मुझे पूरा खिलाई हो । मैं संझा को जो वापस हूँ, खाट द्वारे बिछाई हो; मेरे माथे पसीने को, पोंछ मुझको बिठाई हो; पल्लू से हवा करके, मुझे ठंडक दिलाई हो; मुझे नैनूं भरी लस्सी, पेट भर के पिलाई हो । रात खाने को जो बैठूं, महक चौके से आई हो; वो बेसन की हथपई रोटी, गर्म चूल्हे से आई हो; वो घी के छौंक वाली दाल, आलू दम बनाई हो; मुझे भर पेट खिलवाकर, मेरा जूठा ही खाई हो । जो थक के चूर मैं लेटूं, मेरा माथा दबाई हो; मेरे बालों में अपनी उंगलिया, हौले फिराई हो; तेरे हांथो पर सर रख कर, उसे तकिया बनाई हो; जो सुन लूँ लोरियां तेरी, मुझे तब नींद आई हो । Courtesy: डॉ अपूर्व द्विवेदी अपूर्व via Kavita Vithi.
Posted on: Mon, 30 Sep 2013 09:25:17 +0000

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