वह संदूकची .... +++++++++++++++ ताड़ - TopicsExpress



          

वह संदूकची .... +++++++++++++++ ताड़ पर रखी वह संदूकची धूल और जालों में सनी फिर नजर आई .... ख्यालों में गोते लगाने के लिए चाह हुयी उसे खोलने की वह संदूकची यादों को खुद में समेटे वह संदूकची .... बामुश्किल - कापतें हाथों से खीच , उतार लायी .. क्या गर्द हटाऊ या फिर खोल ही दूँ या फिर युही सहेज कर रख दूँ बापस ताड़ पर ..... उधेड़बुन के इस भंवर में संदूकची से आती कुछ आवाजें सुनाई दी ..... आह ! कौन है - कैसे हुआ - ये करुण आवाजें ..... अब तो खोलना ही है मुक्त तो करना होगा उनको - जो बंद हैं बरसों से इसमें ..... धडकनों को थामे आहिस्ता - आहिस्ता खुल रही थी संदूकची - आह ! ये क्या - जो कुछ बहुत करीने से , सहेजकर रखा था - आज बिखरा सा था टुकड़ों में बँटा सा था गंध और भभक से भरा हुआ था उस गंध के दलदल में कितने जीवन पनप गए थे अस्तित्व हीन से रेंगते हुए कीड़े जो खुद कारण थे उस गंदगी के या - गंदगी में पनपे थे कह नहीं सकती सोचा - दुर्गन्ध हटाऊ या फेक दूँ .... सामने खुली पड़ी वह संदूकची गंदगी में लिपटी अजीब सा मंजर था उस गंदगी और सड़न बीच निकलते हुए अहसास मानसिक वेदनाओं का दौर लेकिन कुछ बेहतर भी करुण आवाजें - मुक्त हो गयी थी दुर्गन्ध खत्म होने लगी थी और रेंगते हुए कीड़े खुद व खुद ना जाने कहाँ गुम हो गए थे - अंतस अब शांत था बहते हुए मोती गर्द हटा चुके थे ..... वह संदूकची अभी भी थी अपने बिखरे व टूटे फूटे सामान के साथ लेकिन गंदगी विलीन हो चुकी थी .....................!!!!!!!! आलोक पटेल :) ;)
Posted on: Sat, 20 Jul 2013 07:43:17 +0000

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