_ अपनी दोनों आंखें बंद - TopicsExpress



          

_ अपनी दोनों आंखें बंद कीजिये, तकिये पर आराम से सर टिकाइए ! अब ध्यान कीजिये उस सबसे ख़ूबसूरत बाग़ या बगीचे का जो अब तक आपने देखा हो ! कल्पना में एक बेहद खुश-नुमा और खिली-खिली नर्म धुप बिखेरती सुबह को लेकर आइये ! पंछियों की कानों को सुकून देने वाली चहचहाहट ! दांतों से कुछ कुतरती हुई एक प्यारी सी गिलहरी ! दूर कहीं से आता हुआ मंदिर के घंटो का नाद ..... नज़दीक किसी जीवन-प्रदायिनी गंगा-स्वरूपा नदी के बहते हुए जल का कल-कल स्वर ! अल-मस्त साधुओं का राम-धुन गाता हुआ कोई समूह ..... और उनके स्वर को बहा कर आपके पास तक लाती हुई ठंडी हवा ! वीणा की तारों को अपनी युवा उँगलियों से सहलाते हुए, भजन गा कर अपने नर्म-कोमल स्वर में कृष्ण को रिझाती पुकारती सी, मीरा की प्रति-लिपि बनने को आतुर सरस्वती-स्वरूपा कोई सनातनी तरुणी ! रह-रह कर, स्वर-साधना करती तरुणी के कोमल चरणों को भिगोने का प्रयास करती नदी की हठीली चंचल धारा ! छुपान-छुपाई, लंगडी टांग, खेलते हुए, आपकी आँखों को बंद पा कर २ या ४ आम तोड़ लेने की फ़िराक में लगा प्यारे-प्यारे निर्दोष-ह्रदय सुकोमल बालकों का समूह ! फूलों को सहलाती-झुलाती, उनकी और नदी किनारे की गीली मिटटी की खुशबु को दूर तक फैलाने का अपना प्रकृति-प्रदत्त कार्य करती हुई सौंधी-सौंधी हवा ! कुदरत के आदेश पर उन फूलों के पराग में से अपना हिस्सा बंटाती हुई कोमल पंखों वाली तितलियां ! अपने बच्चों और जीवन-संगिनी द्वारा की गई मिठाई और गजरे की फरमाइश को पूरा करने की जुगत, उधेडबुन में लगा, तेजी से पतवार चला कर नदी पार जाने वालों को लिए, शाम तक कई-कई बार किनारों को छू लेने का इरादा लिए धीरे-धीरे नजरों में सिकुडती अपनी झोंपड़ी को तकता केवट ! अचानक - नारा-ए-तदबीर ..... अल्लाह हो अकबर .............. डर के मारे शोर करते हुए असमय अपने घोंसलों में लौट कर अपने बच्चों को परों में समेटने का प्रयास करते पंछी ....... ! भीड़ के पैरों तले कुचले जा कर तड़पती-छटपटाती गिलहरी .. ! मंदिर के बंद पट .. ! चिमटों को हथियार बना कर धर्म-रक्षा का अधूरा सा प्रयास करता साधक-समूह .. ! अचानक बदल कर बहने लगी उमस भरी चुभती हुई हवाएं .. ! टूटे हुए तारों वाली वीणा .. ! अपनी लज्जा को हाथों में समेटे केवट की झोंपड़ी में जा छुपी मीरा-स्वरूपा तरुणी ! नेजों के नुकीले, लहू से भीगे सिरों पर लटकते 4 – 6 – 8 वर्ष की अवस्था के मासूम चेहरे ..... कटे हुए छोटे-छोटे हाथ पैर ..... टूटे हुए खिलौने ..... बिखरी हुई मिठाई ..... ! बदहवास सी बिखर चुके फूलों वाले गजरे को हाथ में लिए हुए अपने नाथ-नारायण के शव को फटी आँखों से निहारती स्त्री ..... ! मानवता को शर्म-सार करती हुई उधड़ी-लुटी सी अर्ध-विकसित निष्प्राण नारी देह .. वही नदी .. वही जल .. किन्तु लाल .. ! कहीं दूर किसी ऊंची मीनार से सुनाइ पड़ता कर्कश राक्षसी शोर – इस्लाम ख़तरे में है ................... !!!!!!!!!!! जी हाँ ! यही है इस्लाम ! अब उठिए .. ! नींद और गुदगुदा बिस्तर छोडिये .. ! जागिये .. ! .. जगाइए ! ये तो स्वप्न था..... किन्तु.......... वन्दे मातरम ! जय अखंड हिन्दू राष्ट्र !
Posted on: Mon, 07 Oct 2013 18:14:11 +0000

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