कभी कभी आंखें सैकेंड के सौंवे हिस्से में ही कुछ मासूम से संवाद कर जाती हैं जिनके लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती. आंखों की अपनी भाषा होती है जिसे होठों की मुस्कुराहट के हजारों कोणों के साथ जोड़ कर पढें तो पूरा शास्त्र लिखा जा सकता है. कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि होठ नहीं बल्कि आंखे मुस्कुरा रही हों.....यूं भी होठों की अपनी सीमा है, ये वो बात कभी नहीं कह सकते जो आंखें बिना कुछ कहे कह देती हैं. बिना एक दूसरे को जाने ही आदमी इस भाषा में दूसरे के बारे में कितना कुछ जान लेता है ! © "U Turn" a Novel by Saurabh Arya and Vinit K. Bansal
Posted on: Mon, 08 Jul 2013 09:57:34 +0000
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