गणेश जी ने, कुछ शर्तो के साथ महाभारत लिखने की स्वीकृति देदी awara32.blogspot/2013/09/blog-post_8.html महाऋषि व्यास मैं ज्ञान प्राप्ति पश्च्यात, प्रबल इच्छा जागृत होई की उन्हें महाभारत, भविष्य के मानव के हित के लिए लिखनी है| समस्या थी तो मात्र इतनी की इतने महान, और विशाल ग्रन्थ की परिकल्पना तो करी जा सकती है, क्या लिखना है, यह भी सोचा जा सकता है, बोला भी जा सकता है, बस समस्या थी कि साथ ही साथ लिखा भी जाना चाहिए| लिखने का काम करने मैं वे अपने आपको असमर्थ पा रहे थे| अपने तप से उन्होंने परम इश्वर ब्रह्माजी से बात करी और अपनी यह समस्या बताई, और उनके सुझाव पर उन्होंने गणेश जी को अपने तप से प्रसन्न करा, और अनुरोध करा की वे महाभारत लिखने मैं उनकी सहायता करें| “मुझे लिखना स्वीकार है, बस यह सुनिश्चित करना होगा की मेरी लेखनी रुके नहीं”, गणेश जी ने कहा| व्यास जी ने कुछ सोच कर उत्तर दिया कि उन्हें यह स्वीकार है, और अनुरोध करा की गणेश जी बिना समझे कुछ न लिखे, जिसके लिए गणेश जी तैयार हो गए| तत्पश्चात महाकाव्य जिसे हमसब महाभारत के नाम से भी जानते हैं, वोह लिखी गयी| आगे महाभारत पर विस्तृत चर्चा होगी, और इस संवाद को ध्यान मैं रख कर ही चर्चा हो सकती है| पहले तो यह अच्छी तरह से समझना होगा की किसी भी व्यक्ती के पास, इतिहास मैं, अलोकिक और चमत्कारिक शक्ती नहीं हो सकती| फिर गणेश-व्यास संवाद की महत्वता क्या है? Click & Read Full Post : awara32.blogspot/2013/09/blog-post_8.html
Posted on: Sun, 08 Sep 2013 07:53:20 +0000
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