जी हाँ! आइंस्टीन ने - TopicsExpress



          

जी हाँ! आइंस्टीन ने इस्लाम का शिया मत स्वीकार कर लिया था। अल्बर्ट आइंस्टीन को दुनिया का महानतम वैज्ञानिक माना जाता है। जिसने रोशनी के मिजाज़ के बारे में बताया कि वह फोटान नामी कणों की शक्ल में होती है, रिलेटिविटी जैसामहान नज़रिया दुनिया के सामने पेश किया और एनर्जी व द्रव्यमान की मशहूर समीकरण को दरियाफ्त किया। अगर दुनिया के जीनियस इंसानों की कोई भी लिस्ट बनायी जाती है तो उसमें आइंस्टीन का नाम सबसे ऊपर रखा जाता है। बल्कि अगर किसी को जीनियस कहना होताहै तो उसे आइंस्टीन कहकर बुलाया जाता है। मार्च 2012 में ईरानी न्यूज़ एजेंसी IRIB (24 / 9) ने एक ऐसी खबर नशर की जिसने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है। इस खबर के मुताबिक आइंस्टीन ने अपने जीवन के बादके दौर में इस्लाम का शिया मत स्वीकार कर लिया था। आइरिब नेआइंस्टीन के एक कान्फीडेंशल पत्र का सन्दर्भ दिया है। जिससे ये साबित होता है कि उसने न सिर्फ इस्लाम का शिया मत स्वीकार किया था बल्कि उसके सापेक्षकता (relativity) जैसे साइंसी सिद्धान्तों मेंबहुत से संशोधन भी इस्लामी थियोलोजी के ज़रिये ही उभरकर आये थे और खुद आइंस्टीन ही के अनुसार उसके सिद्धान्त कुरआनव नहजुलबलाग़ा जैसी इस्लामी किताबों में मौजूद हैं। आइंस्टीन ने अपने पत्र में लिखा है कि इस्लाम दूसरे मज़हबों से ज्यादा मज़बूत बुनियाद रखता है और सर्वाधिक परिपूर्ण व तर्कसंगत मज़हब है। आगे आइंस्टीन कहता है कि, 'अगर पूरी दुनिया मुझे इस महान विश्वास से डिगाने की कोशिश करे तो भी वह मेरे दिल में अविश्वास का छोटा सा धब्बा भी नहीं बना सकती।("If the whole world trying to make me upset with this sacred belief, surely they would not be able to do so even if only to whip out a speck of doubt to me.") आइंस्टीन नबी मोहम्मद(स.) की मेराज और इमाम अली(अ.) की आसमानों की सैर का हवाला देतेहुए लिखता है कि यूनिवर्स की सैर कुछ सेकंडों में होना मुमकिन है और इंसान व किसी भी जिंदा बदन को एनर्जी में बदलाजा सकता है और फिर उसे वापस जिंदगी के साथ ही माददी जिस्ममें लाया जा सकता है और इन वाकियात के पीछे शिया हदीसों में साइंटिफिक दलीलें मौजूद हैं जिनका गहराई से अध्ययन करने की ज़रूरत है। उसने इसमें ये भी लिखा है कि अगर उसके रिलेटिविटी के नज़रियातपर फिर से कुरआन व शिया हदीसों की रोशनी में गौर कियाजाये तो साइंस में बहुत सी नयी दरियाफ्तें हो सकती हैं। आइंस्टीन ने शिया आलिम अल्लामा मजलिसी की किताब बिहारुलअनवार में दर्ज हदीस का भी जि़क्र किया है जिसमें नबी(स.) की मेराज के बारे में इस तरह बताया गया है, 'जब नबी(स.) ज़मीन से ऊपर उठे तो उनके कपड़े या पैर के टकराने से बर्तन में भरा पानी छलक उठा। फिर जिस्मानी मेराज के अलग अलग अवक़ात (times) से गुज़रने के बाद नबी(स.) वापस पलटे तो उन्होंने देखा पानी अभी भी छलक रहा है। आइंस्टीन इस एक हदीस में ही साइंटिफिक ज्ञान का भंडार देखता है क्योंकि उसे इसमें वक्त की रिलेटिविटी और टाइम डायलेशन के पसमंज़र में शिया इमाम की वैज्ञानिक क्षमता दिखाई देती है। आइंस्टीन के मुताबिक मेराज का वाकि़या जिंदा माददे को एनर्जी और फिरएनर्जी को वापस जिंदा माददे में तब्दील होने की एक मिसाल है जिसको वह अपनी पहले की खोज में बता चुका है और जो उसकी मशहूर समीकरण E = M.C² के ज़रिये जानी जाती है। अपने क़त्ल का खतरा आइंस्टीन को पहले से ही था। इसीलिए उसने शुरूआत में ही आयतुल्लाह बोरोजर्दी से ये दरख्वास्त की थी कि उसके पत्रव्यवहार को राज़ में रखा जायेक्योंकि उसे डर था कि अगर उसके इस्लाम कुबूल करके शिया होने की बात या इस्लाम से मुतास्सिर होने की बात खुल गयी तो यहूदी उसे क़त्ल कर देंगे। आयतुल्लाह बोरोजर्दी ने ये वादा मरते दम तक निभाया और ये राज़ उनकी व आइंस्टीन दोनों की मृत्यु के बाद ही खुल पाया। इस खतोकिताबत के दोगवाह आयतुल्लाह बोरोजर्दी केदो शागिर्द भाई भी बने जिनके नाम हैं आयतुल्लाह अली गुलपायदानी और आयतुल्लाह लुत्फुल्लाह गुलपायदानी। इन्होंने भी आइंस्टीन की खतोकिताबत और फिर इस्लाम कुबूल कर शिया होने की तस्दीककी है।
Posted on: Fri, 06 Sep 2013 17:48:33 +0000

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