तन, मन और वचन तीनों से - TopicsExpress



          

तन, मन और वचन तीनों से साधन होना चाहिए | शरीर से सेवा, मनसे भगवान् का ध्यान और जिह्वा से भगवन्नाम का जप करे | कोई भी कार्य सांसारिक स्वार्थ के लिए न करके कर्तव्य समझकर करे | जिस-जिस काल में भगवतस्मृति हो, उस-उस समय भगवान् की अत्यन्त कृपा समझे और आनन्द में गद्गद हो जाय | जिस क्षण में भगवान् की विस्मृति हो जाय, उसके लिए बड़ा भारी पश्चात्ताप करे कि इस समय यदि मेरी मृत्यु हो जाती तो न मालूम क्या दुर्दशा होती | सभी बातों में हमें अपना सुधार करना चाहिए | हम मन्दिर में जाय तो हमें मूर्ति में बहुत श्रेष्ठ भाव करना चाहिए | आस-पास की सजावट से भगवद्विग्रह को श्रेष्ठ समझे | बाहरी पूजा से भी मानसिक पूजा का अधिक महत्त्व है | बस, हृदय-आकाश में या बाह्य-आकाश में मानसिक मूर्ति की स्थापना करके मानसिक सामग्री द्वारा उनकी सेवा-पूजा करता रहे | यह कार्य हर समय चलता रहे और इसीमें मस्त रहे | भगवान के दया, क्षमा, शान्ति , समता आदि गुणों को बार-बार याद करे |
Posted on: Tue, 01 Oct 2013 11:53:56 +0000

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