बात ३१ जुलाई १९५६ की हैं - TopicsExpress



          

बात ३१ जुलाई १९५६ की हैं जब बाबासाहब ने अपने दुःख का कारन बताया . बाबासाहब श्याम के समय अपने २६ अलीपुर रोड मैं बैठे हुवे थे , और काफी उदास थे ये बात नानक चंद रत्तू जी ने पूछा तब बाबासाहब ने अपने दुःख का कारन बताने लगे “मुझे किस बात का दुःख हैं ये तुम लोग नहीं समझोगे , मुझे इस बात का बहुत दुःख हैं की अपने जीवन काल मैं अपना कार्य पूरा नहीं कर पाया | और मेरी ये इच्छा थी मैं अपने लोगो को बाकि समाज के साथ साथ राजनैतिक सत्ता के हिस्सेदार बनते देखू | मैं अभी इस पलंग पर बीमार के कारन बैठा रहता हूँ | मैंने जो कुछ सुविधाए लोगो के दी हैं उसका फायदा समाज के कुछ ही लोग ले पाए और पडने लिखने ने बाद उन्होने समाज के तरफ अपना मुह मोड लिया ऐसे लोगो का समाज के प्रति रवैया विश्वासघातकी हैं , मैंने जैसा सोचा था उससे कई जादा वो लोग स्वार्थी निकले, वो केवल अपने लिए जीने लगे ऐसा जीना समाज के लिए आत्मघातकी साबित होगा| मैं हजारों लाखो लोगो तक मेरा काम पहुचना चाहता था जो आज भी भारतभर देहातों-गावो मैं रहते हैं , जिन की आज भी आर्थिक और सामाजिक वैसेही हैं जो हजारों सालो से रही हैं पर , अभी मेरी जिंदगी कुछ जादा नहीं बची | मुझे मेरे जीतेजी मेरी किताबे “बुद्ध अंड हिस् धम्मा” (BUDDHA AND HIS GOSPIL ) “REVOLUTION AND COUNTER REVOLUTION IN ANCIENT INDIA “ , “ RIDDLES OF HINDUSIM “ का प्रकाशन करना था मगर मेरे जीतेजी ऐसा मुन्किन नहीं लगता मुझे ऐसा लगा था की मेरी जिंदा रहते मेरे समाज मैं से कोई आगे आ कर इस मिसन को आगे ले जायेगा मगर ऐसा कोई मुझे अभी दिखता नहीं , जिन के उप्पर मुझे भरोसा था विश्वास था वो लोग सत्ता के लिए आपस मैं ही लड़ रहे हैं वो लोग ये नहीं समझ रहे की कितनी बड़ी जिमेदारी उनके उप्पर हैं | मुझे और कुछ साल इस देश और इस समाज के लिए काम करने की इच्छा थी मगर अब जिंदगी जादा बची नहीं | मौजूदा हालत मैं देश के विकास अपना मत रखना बहोत ही मुश्किल हो रहा हैं जहा पर लोग प्रधानमंत्री के विचारों के खिलाफ जाने को तैयार नहीं हैं फिर वो देश और समाज हित के लिए कितना ही फायदेमंद क्यों ना हो | मैंने जो कुछ हासिल किया हैं वो खुद की बदौलत हासिल किया हैं ऐसा करते वक्त मुझे ढेर सारे लोगो के विरोध का खासतौर पर समाचार पत्रों का खासा विरोध सहन करना पड़ा , और आज जो ये काफिला यहाँ तक आया हैं वो काफी संघर्ष और मेहनत से मैंने लाया हैं अगर ये कारवा उन्हें आगे ले जाना हैं तो उन्हें कई समस्याओँ उअर कठिनाइयों का सामना कारण पड़ेगा अगर मेरे समाज को आत्मसन्मान से जीना हैं तो ये संघर्ष जरी रखना पड़ेगा | अगर उनलोगों से ये संघर्ष नहीं होगा तो उन लोगो से कह देना की ये काफिले को यही छोड दे इसे किसी भी हालत मैं पीछे नहीं जाने दे , हो सकता हैं ये मेरे जीवन का आखरी संदेश हो पर मेरे इस संदेश को मेरा समाज नजरअंदाज नहीं करेगा ऐसी मैं आशा करता हूँ , जाओ नानक जाओ मेरा ये संदेश मेरे समाज के लोगो को पंहुचा दो जाओ जाओ जाओ
Posted on: Tue, 13 Aug 2013 15:16:27 +0000

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