ये है रामनगर का चोपड़ा वन ग्राम, कुदरत ने इसे जितनी ख़ूबसूरती बख्शी है, व्यवस्था और सरकारों ने यहाँ के लोगों को उतना ही दर्द दिया है...गांव वालों के मुताबिक ये गांव १९३२ के आसपास अंग्रेजों ने वन विभाग की टोंगिया प्रणाली के तहत बसाया था. उनके पुरखों ने आसपास कई एकड़ जंगल लगाया. मगर जंगलों से घिरा ये गांव विकास की दौड़ से पीछे रह गया है..लोक सभा व् विधानसभा में वोट देने वाले इन ग्रामीणों को ग्राम पंचायत चुनने का अधिकार नहीं है, इक्कीसवीं सदी में भी बिजली, पानी,सड़क स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएँ यहाँ के लोगों के लिए एक सपना ही है..कल इस गांव का भ्रमण किया तो उत्तराखंड के अलग राज्य बनने की सार्थकता पर सोचने को मज़बूर हुआ..ये कोई अकेला गांव नहीं राज्य में खत्ते, टोंगिया, गोठ और वन ग्रामों में हज़ारों की आबादी बसी हुई है..जिनके लिए पार्टियां और उनके नेता सिर्फ चुनाव के वक़्त सोचते हैं....शायद उत्तराखंड राज्य निर्माण के आंदोलन में ऐसे ही तमाम सवालों का हल खोजे जाने की आकांक्षा शामिल रही थी...बहुगुणा जी सुनेंगे ??
Posted on: Mon, 28 Oct 2013 11:41:14 +0000
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