सूचना – यह टिप्पणी अशलील - TopicsExpress



          

सूचना – यह टिप्पणी अशलील है और चेतन भगत के पंख्खों को नाराज कर सकती है कृपया अपने विवेक का सहारा लें .... भले ही चेतन भगत युथ आईकान क्यों न हो लेकिन मुझे उनकी लेखनी कतई पसंद नही है , उनकी लेखनी आपको आपकी आत्मा तक नहीं पहुचाती है , आप वह आत्मीय अनुभव नही कर पाते हे जो आपको ऐक उपन्यास पढ़ते वक्त होना चाहीये – कई लोग मेरी बातो से सहमत कतई न होंगे किंतू में एक उदाहरण से अपनी बात रखता हूँ – "मुंशी प्रेमचन्द" से तो आप व़ाकिफ ही होंगे , उनका एक उपन्यास है "कर्मभूमी" उसका एक किरदार है सकीना .. इस उपन्यास में प्रेमचन्द जी ने उसके रूप को इस प्रकार से लिखा है कि पढ़ते ही बनता है जब आप उस किरदार के रूप के बारे में पढ़ते है और कल्पनाऐं करते है तो एक नया ही अनुभव होता है पढ़ते-पढ़ते रोम-रोम खड़ा हो जाता है लिंग नही ---- यही होता है एक शुद्द आत्मीय अनुभव अब बात करते हैं "सहादत हसन मंटो" की उनकी एक कहानी है "बू" इस कहानी में मंटो कुछ ज्यादा ही हद से आगे बढ़ गये – इसमें मंटो एक क्रिश्चन लडकी के बारे में लिखते हैं जो कि लड़के के साथ संबन्ध बना रही है इस कहानी में मंटो लड़के के अनुभव लिख रहे है कि जब लड़का उस लड़की का ब्लाउज खोलता है तब उसके स्तन ..... और एक अलग ही बू उनमें से आती है .............. इसको पढ़ते-2 आप उसी कमरे में पहुंच जाते हैं उस बू को महसूस करते हैं आपका रोम-रोम खड़ा हो जाता , लिंग नही जबकी चेतन भगत के साथ ऐसा नही है (पहले ल़डके और ल़ड़की किस करते है और फिर सेक्स करते है फिर आप 3-5,3-5 करते हैं)
Posted on: Thu, 18 Jul 2013 10:29:43 +0000

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