Our response to Shri Kargeti - a social - TopicsExpress



          

Our response to Shri Kargeti - a social activist: करगेती जी की बातों को समर्थन करने का मन तो है पर मेरा मानना है कि ये राजनैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है हम सबकी कि सिर्फ समर्थन से आगे बढकर कुच्छ सार्थक पर्यास के लिए करगेती जी को उत्साहित/ प्रोत्साहित किया जाय। जरूरत पड़े तो कुछ अर्थ व्यवस्था का इंतेज़ाम भी किया जाय. उत्तराखंड के कई विद्वान और तथाकथित विद्वान दिन भर कहीं न कहीं ज्ञान बांटते रहते है। ऐसे ज्ञानी- ध्यानी लोगो से कहा जाय की इस जमीन खरीद-फरोकती के मामले मे कोर्ट का रास्ता अपनाया जाय. संसद और विधान सभा में इस पर बहस के लिए लॉबिंग की जाय… ऐसे लोगों को ढूँढा जाय तो नग्न समाज में भी अपनी इज्ज़त बचाए हुए है . … सड़क , संसद/विधान सभा और कचहरी में एक साथ वॉर किया जाय……………… करगेती जी ने जो मुद्दा उठाया है वो सिर्फ सत्यनारायण की कथा नहीं है जिसमे पंडित जी भी सिर्फ लीलावती और कलावती के बारे में बताते हैं और सभी भक्त जन प्रशाद ले कर स्वयं को कृतार्थ मानते हैं… ये कडवी राजनैतिक सच्चाई है जी उकड (U.K.D) जैसे दलों के बस से बहार है … कांग्रेस भाजपा इसे करेंगे नहीं ……………. तो फिर करेगा कौन??????????? सिर्फ समर्थन नहीं सहयोग भी… A quote from Sardar Bhagat Singh "Many good men think that social service (in the narrow sense, as it is used and under stood in our country) is the panacea to all our ills and the best method of serving the country. Thus we find many ardent youth contending themselves with distributing grain among the poor and nursing the sicks all their life. These men are noble and self-denying but they cannot understand that charity cannot solve the problem of hunger and disease in India and, for that matter, in any other country". इसी बात को अगर आज कल के उत्तराखंड के संधर्भ मे कहा जाय तो वो इस प्रकार होगा "उत्तराखंड मे आई इस भयानक त्राशदी के दौर में कुछ लोग सोच रहे है की आटा- दाल या कम्बल चटाई दान करना ही सबसे भला और उचित तरीका है, तथाकथिक सबसे बड़े स्वनाम धन्य क्रन्तिकारी दल को लगता है कि देहरादून में दफ़्तर पर कब्ज़ा करना ही सबसे बड़ी राजनैतिक जीत है, ये लोग ये नहीं जानते हैं कि पेट की भूख को आधा अधुरा मिटा कर ये समाज का कितना बड़ा नुकसान कर रहे है, जनता के बीच पनपते सवालों को दबा कर ये कितना बड़ा गुनाह कर रहे है, सार्री दुनिया जानती हैं की हिमालय आपदा संभावित क्षेत्र है, तो फिर पिछले 12 साल में आपदा राहत के लिए आवश्यक इंतेज़ाम क्यों नहीं हुए , आकस्मिक (Contingency) राशन, तेल, दवाई आदि की वैकल्पिक व्यवस्था क्योँ नहीं थी" इस आपदा राहत और आटा-दाल बाँटने मे ये सवाल पीछे नहीं छूटने चाहिए और न ही "अच्छा है … अच्छा है"…. कहकर करगेती जी की सत्यनारायण कथा का परसाद खा कर सर पर हाथ फेर कर बुनियादी सवालों को भूलने का है …… तो फिर करगेती जी हो जाओ सुरु P.I.L के लिए ………. हमारा सहयोग ( मन और धन) आपके साथ रहेगा ………….
Posted on: Fri, 26 Jul 2013 06:00:45 +0000

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