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अंग्रेजी माध्यम स्कूल और धक्के खाते माता-पिता English Medium Convent, Parents Children मेरे शहर में कई स्कूल हैं (जैसे हर शहर में होते हैं), कई स्कूलों में से एक-दो कथित प्रतिष्ठित स्कूल(?) भी हैं (जैसे कि हर शहर में होते हैं), और उन एक-दो स्कूलों के नाम में “सेंट” या “पब्लिक” है (यह भी हर शहर में होता है)। जिस स्कूल के नाम में “सेंट” जुड़ा होता है, वह तत्काल प्रतिष्ठित होने की ओर अग्रसर हो जाता है। इसका सबसे पहला कारण तो यह है कि “सेंट” नामधारी स्कूलों में आने वाले माता-पिता भी “सेंट” लगाये होते हैं, दूसरा कारण है “सन्त” को “सेंट” बोलने पर साम्प्रदायिकता की उबकाई की बजाय धर्मनिरपेक्षता की डकार आती है, और भरे पेट वालों को भला-भला लगता है। रही बात “पब्लिक” नामधारी स्कूलों की…तो ऐसे स्कूल वही होते हैं, जहाँ आम पब्लिक घुसना तो दूर उस तरफ़ देखने में भी संकोच करती है। ऐसे ही एक “सेंट”धारी स्कूल में कल एडमिशन फ़ॉर्म मिलने की तारीख थी, और जैसा कि “हर शहर में होता है” यहाँ भी रात 12 बजे से पालक अपने नौनिहाल का भविष्य सुधारने(?) के लिये लाइन में लग गये थे। खिड़की खुलने का समय था सुबह नौ बजे, कई “विशिष्ट” (वैसे तो लगभग सभी विशिष्ट ही थे) लोगों ने अपने-अपने नौकरों को लाईन में लगा रखा था। खिड़की खुलने पर एक भदेस दिखने वाले लेकिन अंग्रेजी बोलने वाले बाबू के दर्शन लोगों को हुए, जो लगभग झिड़कने के अन्दाज में उन “खास” लोगों से बात कर रहा था, “जन्म प्रमाणपत्र की फ़ोटोकॉपी लेकर आओ, फ़िर देखेंगे”, “यह बच्चे का ब्लैक-व्हाईट फ़ोटो नहीं चलेगा, कलर वाला लगाकर लाओ”, “फ़ॉर्म काले स्केच पेन से ही भरना”… आदि-आदि निर्देश (बल्कि आदेश कहना उचित होगा) वह लगे हाथों देता जा रहा था। मुझ जैसे आम आदमी को जो यत्र-तत्र और रोज-ब-रोज धक्के खाता रहता है, यह देखकर बड़ा सुकून सा महसूस हुआ कि “चलो कोई तो है, जो इन रईसों को भी धक्के खिला सकता है, झिड़क सकता है, हड़का सकता है, लाईन में लगने पर मजबूर कर सकता है…”। स्कूल के बाहर खड़ी चमचमाती कारों को देखकर यह अहसास हो रहा था कि “सेंट” वाले स्कूल कितने “ताकतवर” हैं, जहाँ एडमिशन के लिये स्कूली शिक्षा मंत्री की सिफ़ारिश भी पूरी तरह काम नहीं कर रही थी। एक फ़ॉर्म की कीमत थी मात्र 200 रुपये, स्कूल वालों को कुल बच्चे लेने थे 100, लेकिन फ़ॉर्म बिके लगभग 1000, यानी दो लाख रुपये की “सूखी कमाई”, फ़िर इसके बाद दौर शुरु होगा “इंटरव्यू” का, जिसके लिये अभी से माता-पिता की नींदें उड़ चुकी हैं, यदि इंटरव्यू में पास हो गया (मतलब बगैर रसीद के भारी डोनेशन को लेकर सौदा पट जाये) तो फ़िर आजीवन स्कूल वालों की गालियाँ भी खाना है, क्योंकि यह मूर्खतापूर्ण मान्यता विकसित की गई है कि इन स्कूलों से "शासक" निकलते हैं, बाकी स्कूलों से "कामगार", जबकि यही वह स्कूल है, जहाँ हिन्दी में बातें करने पर दण्ड लगता है, बिन्दी लगा कर आने पर लड़कियों को सजा दी जाती है, और मेहंदी लगाकर आने पर कहर ही बरपा हो जाता है। लेकिन बच्चे के उज्जवल भविष्य(?) के लिये यह सब तो सहना ही होगा… English Medium Schools, Education in English Medium, Convent Schools and Hindi, Secularism and Convent, Admission in English Medium Schools, Donations in Schools, इंग्लिश मीडियम स्कूल, अंग्रेजी शिक्षा माध्यम स्कूल, कॉन्वेंट स्कूल और हिन्दी, डोनेशन स्कूल और शिक्षा, धर्मनिरपेक्षता और कॉन्वेंट, स्कूल एडमिशन और अंग्रेजी,
Posted on: Sun, 23 Jun 2013 15:52:50 +0000

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