अमर्त्य सेन मोदी के खिलाफ, राहुल गाँधी, मुलायम सिंह, लालू, नितीश कुमार, रविश कुमार, सागरिका घोष, बरखा दत्त, राजदीप सरदेसाई, दीपक चौरसिया, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी,दिग्विजय सिंह, केजरीवाल, सब के सब मोदी के खिलाफ. मुद्दे की बात ये है की पिछड़े वर्ग की राजनीति करने वाले छेत्रिय नेता एक पिछड़े वर्ग से आने वाले और अपने दम पर एक चाय वाले से प्रधानमंत्री पद के दावेदार बनने वाले नेता को समर्थन क्यों नहीं दे रहे. भारत की सारी अर्थव्यवस्था की चूलें हिला देने वाले अर्थशास्त्री क्यों गुजरात मॉडल की सराहना नहीं करना चाहते. सांप्रदायिक सद्भावना की दुहाई देने वाले क्यों पिछले ११ साल की गुजराती एकता को क्यों भूल जाते हैं. २००२ से आगे न बढ़ पाने मीडियाई रंग सियारों को क्यों जम्मू, असाम, मुज़फ्फरनगर याद नहीं आता. सिर्फ दिल्ली के चुनाव में भाग ले रही एक नयी पार्टी के नेता क्यूँ सिर्फ मोदी की इमेज पे हमले के लिए अपने जस्ट चिल टाइप कार्यकर्ताओं को निर्देश देते रहते हैं. भैय्या सीधी सी बात है, कांग्रेस मुक्त भारत का इतना विशाल माहोल इमरजेंसी के बाद पहली बार बना है. अब साम दाम दंड भेद चलते हुए कांग्रेस अपने मीडियाई सियारों को, NGO के झोला छाप नंगों को, और सिर्फ दाढ़ी बाधा के टीवी चेनलों पर आके अपने आपको इंटेलेक्चुअल समझने वाले दल्लों को टीवी के जरिये मोदी की इमेज बिगाड़ने के लिए छोड़ेगी. अब राष्ट्रवाद की परीक्षा ख़बरों के पीछे की खबर भांपने में है.
Posted on: Mon, 21 Oct 2013 08:05:17 +0000
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