आज सवेरे जब अपने खेत मेँ लगी धान की फसल का जायजा लेने जा रहा था तब गांव के एक दादाजी ने मुझे अपने बैठके मेँ बुलाया.हाल-चाल के बाद उन्होने मुझसे कुछ सवाल पुछेँ.जिसमेँ हिन्दी व्याकरण के एक प्रश्न पर मैँ निरुत्तर हो गया और मूंह बा दिया. शर्मिँदा हो गया.क्योँकि प्रश्न बेहद सामान्य सा था. बाद मेँ उन्होने मुझे सही उत्तर के बारे मेँ विस्तार से समझाया.मैँ उनसे बेहद प्रभावित हुआ.वे दादाजी अपने जमाने मेँ सातवीँ कक्षा तक हीँ पढे हैँ.... आज सरकार दावे करती है कि शिक्षितोँ की संख्या बढ रही है परन्तु शिक्षा का स्तर क्या हो गया है अब??????? जिसमेँ एक स्नात्तक का नौजवान अपने जमाने के सातवीँ पास बुजुर्ग से हार जाता है.........लेकिन, मैँ केवल सरकार की शिक्षा नीति की आलोचना करके अपने अन्दर की कमी से मूंह नहीँ मोड़ सकता.मेहनत करुंगा और सुधार ले आउंगा.
Posted on: Wed, 17 Jul 2013 07:07:12 +0000
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