कालसर्प योग क्या है ? ASTROLOGER - TopicsExpress



          

कालसर्प योग क्या है ? ASTROLOGER -DILIP DEV DWIVEDI MUMBAI & MIRZAPUR UP IN INDIA [ VINDHYA JYOTISH SADHNA SAMITI ] 9651808820 ,9473614183 मनुष्य के जीवन में जब गूढता निर्माण होती है तब मन साशंक बनता है | वह सुख दुःख घटना क्रम में लगातार घूमता है | कभी वह सुखदुखमे भरता है | तो कभी रिक्त होता है | सुखद घटना के बारे मे उसकी कोई शिकायत नहीं रहती | किन्तु जब वह पीड़ा से त्रस्त होता है | तो उसके जीवन में हार-ही-हार कर लेता है | और कुछ निराशावश प्राणी मौत तक के गले लग जाता है | मृत्यु मे ही जग का कारोबार चलता है | इस के अनुसार वासना रूपी राषी से फिरसे नरदेह प्रकट होता है | पूर्व जनम का पाप-पुण्य संचित लेकर योग्य अयोग्य फल भोगने के लिए पूनःजन्म लेता है | उसके अनुसार उसका जन्मक्रम चलता रहता है | उसी मे संघर्ष करता है | “ उद्धरेन आत्मानात्मानम ” इस गीता तत्व के अनुसार अपना उद्धार मनुष्य स्वंय ही कर सकता है | अनंत अनुभवों के पश्च्यात वह सत्य भी जान लेता है | और यही जीवन का अंतिम सत्य है | ज्योतिष शास्त्र मे जन्मकुंडली मे ग्रहों की स्थिती किसी भी स्थान मे एक होती है | तो उसे “ योग ” कहते है | और जब ग्रह ‘ राहू-केतु ’ के आजू बाजु मे हो तो उसे “ कालसर्प योग ” कहते है | कालसर्प की कुंडलिया ज्यादातर ‘ राहू-केतु ’ पापग्रहोसे शनि-मंगल-चंद्र इन ग्रहों का कुयोग होता है | उनकी युती या दृष्टि योग से पहचाने जाते है | कुंडली मे प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, दशम स्थानपर ‘ राहू-केतु ’ का आगमन होता है | और पंचम, अष्टम, एकादश व्यय के साथ धन व्यव स्थानपर आते ही शापित कुंडली बन जाती है और इसी के कारन अनर्थ निर्माण हो जाते है | शापित कुडली का अर्थ है हमारे घराने में पुर्वापार चला आ रहा दोष | यह दोष पूर्वजन्म के कुकर्म और पित्रों की अवकृपा का फल है | वेदों मे ऐहिक और पारलौकिक सुख प्राप्त करने के लिए और हमारे दुःख, कष्ट, पीडा दूर करने के लिए और अपने काम में सफलता, यश, किर्ती तथा वैभव पाने के लिए जो पूजा-विधि बताए है उनमे से ही एक “ कालसर्प शांती “ पूजन है | इस संसार में जब किसी भी बालक का जन्म होता है, वह क्षण उस बालक के संपूर्ण जीवन के लिए अत्यंत ही महत्वपुर्ण होता है। ठीक उसी समय (क्षण) को आधार मानकर उस बालक की जन्मकुंडली बने जाती है | यह जन्मकुंडली उस बालक के समग्र जीवन का एक ऐसा लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है, जो उसपर पूर्ण रुपसे ही उतरता है | जन्मसमय के आधार पर बनायी गयी जन्मकुंडली में बारह भाव होते है | जन्मकुंडली के इन बारह भावमे नवग्रह की स्थिति और युति के भिन्न-भिन्न प्रकार के योग बनते हे| ये योग जातक के जीवन पर अपना शुभ-अशुभ प्रभाव अवश्य डालते हे| इन योगों और नवग्रहो की स्थिती के आधार पर किसी भी जातक के आचार-विचार आदि के बारे में पता लगाया जा सकता है| जब कुंडली की किसी स्थान में कई ग्रह इकट्ठे हो जाते हैं|तो ऐसी स्थिती को ‘योग’ कहा जाता है| जोतीषशास्त्र में योगों का बहुत महत्व मन गया है| यदि जन्मकुंडली मे सभी ग्रह राहू-केतु के एक ही ओर स्थित हों तो ऐसी स्थिती को ‘कालसर्प’ कहा जाता है| कालसर्प योग बोहुत ही कष्टदायक योग है| सांसारिक जोतिषशास्त्र में इस योग के विपरीत परिणाम दृष्टिगोचर होते हैं| प्राचीन भारतीय जोतिषशास्त्र इस कालसर्प योग के बारे में मौन साधे बैठा है| आधुनिक जोतिष विद्वानों ने भी इस ‘कालसर्प’ योग पर प्रकाश डालने का कष्ट नहीं उठाया की जातक के जीवन पर इसका क्या परिणाम होता है| अब यह बात सिद्ध हो चुकी हे के जोतिषशास्त्र में ‘कालसर्प’ योग है| सूर्य के दोनों ओर ग्रह रहने पर ‘वेली’, ‘वसी’ और ‘उभयचारी’ योग बनते हैं| चन्द्र के दोनों ओर ग्रह होने पर ‘अनफा’, ‘सुनफा’, ‘दुर्धरा’ और ‘केमद्रुम’ योग बनते हैं| यदि शनि के साथ चन्द्रमा हो तो विषयोग का निर्माण होता हैं| चंद्र के साथ हो तो ‘चांडाल’ योग बनता हैं| ठीक इसी तरह राहू-केतु के बिच सभी ग्रह अटक जाने पर जो योग बनता हैं| उसे ‘कालसर्प’ योग कहा जाता हैं| राहू-केतु द्वारा सारे ग्रह गटक लिए जाने से जातक पर होने वाले इसके दुष्प्रभावो को नकारा नही जा सकता हैं| कालसर्प योग की चर्चा आज चारो तरफ सुनी जा सकती हैं| अनेको विश्व-विख्यात जोतिषचार्य ने भी इस योग को सहर्ष स्वीकार हैं| प्राचीनकालीन जोतिषचार्यो महर्षि पराशर तथा वाराहमिहिर आदि ने भी ‘कालसर्प’ योग को मान्यता प्रदान की हैं| और अपने ग्रंथों में इसका बहुत वर्णन भी ‘कालसर्प’ योग सिद्ध किया हैं| ASTROLOGER -DILIP DEV DWIVEDI MUMBAI & MIRZAPUR UP IN INDIA [ VINDHYA JYOTISH SADHNA SAMITI ] 9651808820 ,9473614183
Posted on: Sun, 29 Sep 2013 15:03:15 +0000

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