किसी को भी न चुनने का अधिकार ,प्रथमदृष्ट्या मन को हर्षित सा करता है ,लेकिन क्या यह लोकतंत्र के सेहत के लिए मुफीद है |लोकतंत्र में हम बहुमत के आधार पर सरकारे बनाते है |चुनाव में वामपंथी ,दक्षिण पंथी ,समाजवादी सहित विभिन्न विचारो के लोग अपने अजेंडे के साथ आते है |कई क्षेत्रीय दल और निर्दलीय भी चुनावी जंग में हिस्सा लेते है |अब हम इनमे से सबको नापसंद करते हुए नन का बटन दबाते है ,इस बहाने हम क्या सन्देश देना चाहते है | अपने इस कृत्य से हम लोकतंत्र को कमजोर तो नहीं करने जा रहे है |जिस देश में आजादी के इतने अंतराल के बाद भी सामान्य निर्वाचन क्षेत्रो से दलित चुनाव जीतने को छोडिये राजनैतिक दलों से टिकट भी हासिल नहीं कर सकता वहा किसी को न चुनने का अधिकार समझ से परे है |यह संसदीय लोकतंत्र की जगह अमेरिका की भाति राष्ट्रपति प्रणाली की कवायद का प्रयास तो नहीं है |सबसे महत्व पूर्ण तो यह की इतने संवेदन शील मामले में पहल अथवा निर्णय संसद लेगी या न्यायपालिका |
Posted on: Sun, 29 Sep 2013 07:04:22 +0000
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