दिलों के बलबलों को मैं, भला अल्फ़ाज़ कैसे दूँ, मुझे लफ्ज़ों का गुलदस्ता, सजाना भी नहीं आता। भयानक रूप पर, कोई फिदा कैसे भला होगा, मुखौटा माँज-धोकर, मुझको चमकाना नहीं आता।
Posted on: Sat, 13 Jul 2013 11:30:15 +0000
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