धर्मग्रन्थ दोषी हैं या नहीं के सवाल पर: इन तथाकथित पवित्र किताबों में बहुत सी अमानवीय बातें ऐसी भी हैं जिन्हें किसी भी काल में किसी भी सभ्यता में उचित नहीं ठहराया जा सकता, और उन्हें धर्मग्रंथों में रखने का उद्देश्य मात्र और मात्र शोषण ही था. हाँ ये बात जरुर मानता हूँ कि सभी धर्मग्रंथों में कुछ अच्छी बातें जैसे नैतिक शिक्षा इत्यादि जोड़ी गईं हैं ताकि लोगों को मूर्ख बनाकर उनका शोषण किया जा सके और उन्हीं अच्छी बातों की आड़ में अपने घिनौने और कुत्सित एजेंडों को भी लागू किया जा सके. ये सभी धर्म और उनकी किताबें दफन कर देने योग्य हैं. चोरी न करना, सत्य बोलना तथा ईमानदारी से रहना जैसी नैतिक शिक्षाओं के लिए धर्म अथवा मज़हब की कोई आवश्यकता नहीं है.
Posted on: Sat, 03 Aug 2013 04:30:39 +0000