प्रश्न -- मूर्ति पूजा कहां - TopicsExpress



          

प्रश्न -- मूर्ति पूजा कहां से चली ? उत्तर --- जैनियों से । प्रश्न --- जैनियों ने कहा से चलई ? उत्तर --- अपनी मूर्खता से । प्रश्न --- जैनी लोग कहते हैं कि शांत ध्यानावस्थित बैठी हुई मूर्ति देखके अपने जीव का भी शुभ परिणाम वैसा ही होता है । उत्तर --- जीव चेतन और मूर्ति जङ है । क्या मूर्ति के सदृश जीव भी जङ हो जायगा ? यह मूर्तिपूजा केवल पाखण्ड मत है , जैनियों ने चलाई है । प्रश्न --- शाक्त आदि ने मूर्तियों में जैनियों का अनुकरण नहीं किया है , क्योंकि जैनियों की मूर्तियों के सदृश वैष्णवादि की मूर्तियां नहीं हैं । उत्तर --- हां यह ठीक है । जो जैनियों के समान बनाते तो जैन मत ने मिल जाते । इसलिये जैन की मूर्तियों से विरूद्ध बनाई , क्योंकि जैन से विरोध करना इनका और इनसे विरोध करना जैनियों का मुख्य काम था । जैसे जैनियों की मूर्ति नंगी ,ध्यानावस्थित और विरक्त मनुष्य के समान बनाई हैं । तो वैष्णवादि ने खूब श्रृंगारित , खङी , स्त्री के सहित रंग राग विषयासक्ति सहिताकार मूर्तियां बनाई हैं ।जैनी लोग बहुत से शंख , घन्टा घङियार नही बजाते । ये लोग बङे कोलाहल करते हैं । तभी तो वैष्णवादि पोपों के चेले जैनियो से बचे और बहुतो ने व्यास आदि के नाम से बहुतेरे ग्रंथ बनाये । उनका नाम “ पुराण “ रखके कथा भी सुनाने लगे । और मूर्तियों को बना , कहीं पहाङ , जंगल में धर आये व भूमि मे गाङ आये । और अपने चेलों से प्रसिद्धी की कि ----- “ मुझको स्वप्न में महादेव , पार्वती , राधा , कृष्ण ,सीता राम व लक्ष्मी , नारायण , भैरव , हनुमान आदि ने कहा कि हम फलाने ठिकाने पर हैं । हमको वहां से ला , मन्दिर में स्थापन कर , तू ही पुजारी होवे तो हम मनोवांछित फल देवें । “ जब आंख के अन्धे गांठ के पूरे लोगों ने सुनकर सच माना और उनसे कहा कि ऐसी वह मूर्ति कहां है ? वह उनको ले जाके दिखलाई । तब तो वे मूर्ख उस धूर्त्त के पग में गिरे और कहा कि “ तेरे पर इस देवता की बङी कृपा है । चलो हम मंदिर बनवा देंगे । और उस में इस देवता की पूजा तू किया करना । और हम लोग इसके दर्शन करके मनोवांछित फल पावेंगे । “ इसी प्रकार जब एक ने किया , पुनः सब पोप -- लोगों ने अपने जीविकार्थ इसी प्रकार कपट – छ्ल से मूर्तियां स्थापन कीं ॥ साभार - आर्य भूषण आर्य कट्टर आर्य समाजी
Posted on: Mon, 14 Oct 2013 05:20:47 +0000

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