यदि मुझे किसी - TopicsExpress



          

यदि मुझे किसी समाचार-पत्र , पत्रिका या फिर टी.वी. चैनल के लिए लिखना होता , तो मैं भी यही लिखता कि ‘चेन्नई-एक्सप्रेस’ एक महान फिल्म है , और इसने अपनी आरंभिक कमाई से बॉक्स-आफिस के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं | मैं यह भी लिखता , कि यह फिल्म सलमान खान की उन ‘ब्लाक-बस्टर’ फिल्मों – ‘दबंग’ , ‘रेडी’ , ‘बाडिगार्ड’ और ‘एक था टाइगर’ – की परम्परा में आती है , अजय देवगन की शानदार फिल्मों – ‘सिघम’ , ‘बोल बच्चन’ और ‘सन आफ सरदार’ – की लीक पर आगे बढती है , शाहरुख़ खान के अपने सुनहरे कैरियर की फिल्मों – ‘डान – 2’ , ‘जब तक है जान’ और ‘रा.वन’ – को फिर से जीती है , और अक्षय कुमार की उस भव्य परम्परा को आगे बढाती है , जिसमें उन्होंने ‘राऊडी राठौर’ और ‘तीस मार खान’ जैसी महान फ़िल्में बनाई थी | अजी साहब ...... लिखने के लिए तो मैं यह भी लिख सकता था , कि यह फिल्म धर्मेन्द्र की उन धमाकेदार फिल्मों – ‘जलजला’ , ‘खतरों के खिलाड़ी’ , ‘पाप को जलाकर राख कर दूंगा’ , ‘मर्द की जुबान’ और ‘एलान-ए-जंग’ – से जरा भी उन्नीस नहीं है , जिनके बल पर उन्होंने 80 और 90 के बीच में बालीवुड पर राज किया था | और यही नहीं , मैं तो ऐसे दर्शको की राय को उस लेख में जरुर शामिल करता , जिन्हें शाहरुख़ खान का दांत पीसना पसंद आता है ,दोनों हाथों को फैलाकर अदा के साथ ही-ही-ही करना पसंद आता है , ‘अंजाम’ फिल्म जैसे उनके चेहरे पर बहते हुए खून को देखना प्रभावित करता है, और साहब ...जिन्हें दीपिका-पादुकोण का वह सीन सबसे अच्छा लगता है , जिसमें वे अपना पल्लू गिराकर ट्रेन पकड़ने के लिए दौडती हैं | लेकिन अफ़सोस कि मुझे यह सब अपने दोस्तों-मित्रों के लिए फेसबुक पर लिखना है , और जिन्हें आगे भी मुंह दिखाना है | इसलिए मैं यह लिख रहा हूँ , कि यदि आपके पास इफरात का समय है , तो ‘टाम एंड जेरी’ , ‘मि. बीन’ , ‘डोरेमान’ या ‘छोटा भीम’ के किन्ही पुराने एपिसोड को तब तक बदल-बदल कर देखते रहिये , जब तक यह ‘ट्रेन’ (चेन्नई-एक्सप्रेस) निकल न जाए | और यदि फिर भी आप इस ‘ट्रेन’ में सफ़र करने के लिए दृढ-प्रतिज्ञ ही हैं , तो फिर इस बात से क्या फर्क पड़ता है , कि आपने अपने समय को बर्बाद करने के लिए कौन सा तरीका चुना है | वह ‘सोनी-सिक्स’ या ‘टेन-स्पोर्ट्स’ पर W.W.E. या F की झूठी फाइट हो सकती है , या इंडिया टी.वी. पर ‘कद्दू में हनुमान’ ढूंढना हो सकता है , या एकता कपूर के धारावाहिक हो सकते हैं , या फिर ‘आस्था’ और ‘संस्कार’ चैनलों का प्रवचन भी हो सकता है | विश्वास मानिए कि इस फिल्म के सहारे आप न तो चेन्नई ही पहुँच पायेंगे , और न ही इसका सफ़र आपके ‘फ़िल्मी पैशन’ के लिए सुहाना ही होगा | वैसे ...... जीवन के सफ़र में हर किसी को पकड़ा ही नहीं जाता , कुछ को उनके हाल पर छोड़ भी दिया जाता है ....|
Posted on: Tue, 13 Aug 2013 03:47:51 +0000

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