शाहबानो प्रकरण - धर्मनिरपेक्षता / साम्प्रदायिकता ? --------------------------------------------------- आज कल हर कोई साम्प्रदायिकता की बात करता है और धर्मनिरपेक्षता की बात करता है, पर आज शायद बहुत कम ही युवाओ को शाहबानो केस के बारे में मालूम होगा। शाहबानो एक 62 वर्षीय मुसलमान महिला और पाँच बच्चों की माँ थीं जिन्हें 1978 में उनके पति ने तालाक दे दिया था। मुस्लिम पारिवारिक कानून के अनुसार पति पत्नी की मर्ज़ी के खिलाफ़ ऐसा कर सकता है। अपनी और अपने बच्चों की जीविका का कोई साधन न होने के कारण शाहबानो पति से गुज़ारा लेने के लिये अदालत पहुचीं। न्यायालय ने अपराध दंड संहिता की धारा 125 के अंतर्गत निर्णय लिया जो हर किसी पर लागू होता है चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो। न्यायालय ने निर्देश दिया कि शाहबानो को निर्वाह-व्यय के समान जीविका दी जाय। अदालत ने गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाया पर भारत के रूढ़िवादी मुसलमानों के अनुसार यह निर्णय उनकी संस्कृति और विधानों पर अनाधिकार हस्तक्षेप था। एक बुढ़िया को गुजारा भत्ता देने से पूरा इस्लाम असुरक्षित हो गया और पूरे भारत मैं इसके खिलाफ मोर्चे खुल गए और उस असली धर्म सापेक्ष जज के पुतले जलाये गए और राजीव गाँधी ने उसी वक़्त सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त करके इस पर रोक लगा कर तुरंत एक नया कानून बना दिया जिसमें कोई मुस्लिम महिला तलाक के बाद भत्ते की मांग नहीं कर सकती। इस नए कानून के अनुसार : "हर वह आवेदन जो किसी तालाकशुदा महिला के द्वारा अपराध दंड संहिता 1973 की धारा 125 के अंतर्गत किसी न्यायालय में इस कानून के लागू होते समय विचाराधीन है, अब इस कानून के अंतर्गत निपटाया जायेगा चाहे उपर्युक्त कानून में जो भी लिखा हो"। कांग्रेस सरकार ने इसे "धर्मनिरपेक्षता" के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। अब आप ही बताइये कि शाहबानो पर कांग्रेस सरकार का निर्णय धर्मनिरपेक्ष था या साम्प्रदायिक? "To spread awareness, please Share avoid Like" "जन-जागरण लाना है तो Like नहीं Share करना है।"
Posted on: Fri, 06 Sep 2013 15:24:50 +0000
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