धीरे धीरे ये ज़ख़्म भी भर - TopicsExpress



          

धीरे धीरे ये ज़ख़्म भी भर चले हैं! कुछ कमी दर्द मैं भी आई है ! कुछ सुलगना कम हुआ है , कुछ अंगारो ने ठंडक पाई है ! अब फूल खिलने का समय है, अब मौसम बहारो का आने को है , अब जान जिस्म मैं लौटी है , अब जीने की वजह पाई है !
Posted on: Mon, 25 Nov 2013 03:00:07 +0000

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