मेरी माँ को काट कर त्यौहार मनाये ... कैसे कह दू ईद मुबारक ..... भाड में जाए ऐसी धर्मनिरपेक्षता और सेकुलरवादिता ... जय श्रीराम ....... फकत वोटो की खातिर ईद या इफ्तारी नहीं होगी मेरी गाय खाने वालों से कभी यारी नहीं होगी दुआ गर अमन की है तो फिर ये यारिन्याँ कैसी ? ऐ दोगला भेष तो खुदा से भी वफादारी नहीं होगी गला जो गाय माँ का काटते हों उनसे गले मिलना मेरी ये मेरे मजहब से ही क्या मक्कारी नहीं होगी। गर अब और होगा जुल्म तो हम एलान कर देंगे किसी मोमिन से अब कोई भी खरीदारी नहीं होगी ******** कवि सुमित मिश्रा***********
Posted on: Wed, 16 Oct 2013 07:46:11 +0000
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