ज़िब्हे अज़ीम - (Part-2) इसी - TopicsExpress



          

ज़िब्हे अज़ीम - (Part-2) इसी दौरान यह वाक़या पेश आया कि हज़रत इब राहीम ने ख्वाब में देखा कि वह अपने बेटे को ज़िब्ह करने के लिये तैयार हो गये, लेकिन यह एक प्रतीकात्मक सपना था, यानि इसका मतलब यह था कि अब ईश्वरीय योजना के मुताबिक़ अपने बेटे को एकेश्वरवाद के मिशन के लिए वक्फ़ ¼Dedicate½ कर दो। एक ऐसा मिशन जो अरब के खुश्क रेगिस्तान में शुरू होने वाला था। कुरआन में हज़रत इबराहीम के उस ख्वाब का ज़िक्र सूरा नम्बर 37 में आया है। इसमें बताया गया है कि पैग़म्बर इबराहीम ने ख्वाब के बाद जब अपने बेटे को कुरबान करना चाहा तो उस वक़्त खुदा के फ़रिश्ते ने आपको बताया कि आप बेटे के फ़िदये के तौर पर एक दुम्बा ज़िब्ह कर दें। सो हज़रत इबराहीम ने ऐसा ही किया। इस बात को बताते हुए कुरआन में कहा गया है-‘वफ़दैनाहु बिज़िब्हिन अज़ीम‘ (अस्साफ़्फ़ातः 107) जैसा कि सही बुख़ारी की रिवायत से मालूम होता है, इसके बाद हज़रत इबराहीम ने अपनी पत्नी हाजरा और अपने बेटे इस्माईल को अरब के एक रेगिस्तानी मक़ाम पर आबाद कर दिया। यह वही मक़ाम था जहां अब मक्का आबाद है। इसी मक़ाम पर बाद में हज़रत इबराहीम और उनके बेटे इस्माईल ने काबा की तामीर की और हज का निज़ाम क़ायम फ़रमाया। हाजरा और इस्माईल को रेगिस्तान में इस तरह आबाद करने का मक़सद क्या था ? इसका मक़सद था एक नई नस्ल बनाना। उस ज़माने की शहरी आबादियों में बहुदेववादी संस्कृति पूरी तरह छा चुकी थी। उस माहौल में जो भी पैदा होता वह बहुदेववादी कंडिशनिंग का शिकार हो जाता। इस तरह उसके लिए एकेश्वरवाद के पैग़ाम को समझना मुमकिन न रहता। आबाद शहरों से दूर रेगिस्तान में हाजरा और इस्माईल को इसलिए बसाया गया ताकि यहां कुदरती माहौल में उनके ज़रिये एक नई नस्ल तैयार हो। एक ऐसी नस्ल जो बहुदेववादी कंडिशनिंग से पूरी तरह पाक हो। औलाद और नस्ल के ज़रिये यह काम जारी रहा, यहां तक कि बनू इस्माईल की क़ौम वजूद में आई। इसी क़ौम के अन्दर 570 ई. में पैग़म्बरे इस्लाम मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब पैदा हुए। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को 610 ई. में अल्लाह तआला ने नबी मुक़र्रर किया। उसके बाद आपने एकेश्वरवाद के मिशन का आग़ाज़ किया। बनू इस्माईल के अन्दर से आप को वे क़ीमती लोग मिले जिन्हें ‘अस्हाबे रसूल‘ कहा जाता है। उन लोगों को साथ लेकर आपने तारीख़ में पहली बार यह किया कि एकेश्वरवाद की दावत को फ़िक्र के मरहले से आगे बढ़ाकर इन्क़लाब के मरहले तक पहुंचाया। हज़रत इबराहीम के ज़रिये जो महान दावती योजना अंजाम पाई, हज की इबादत गोया उसी का एक रिहर्सल है। ज़ुलहिज्जा के महीने की तारीख़ों में सारी दुनिया के मुसलमान इकठ्ठा होकर रिहर्सल के रूप में उस तारीख़ को दोहराते हैं जो हज़रत इबराहीम और उनकी औलाद के साथ पेश आई। इस तरह सारी दुनिया के मुसलमान हर साल अपने अंदर यह संकल्प ताज़ा करते हैं कि वे पैग़म्बर के इस नमूने को अपने हालात के मुताबिक़ लगातार दोहराते रहेंगे। हर ज़माने में वे अल्लाह की तरफ़ बुलाने के इस अमल को लगातार ज़िन्दा रखेंगे, यहां तक कि क़ियामत आ जाए। कुरबानी इस इबराहीमी अमल के केन्द्र में है। यह एक महान कार्य है, जिसकी कामयाब अदायगी के लिए कुरबानी की भावना लाज़िमी है। इस कुरबानी की स्पिरिट को मुसलसल तौर पर ज़िन्दा रखने के लिए हज के ज़माने में मिना में और ईदुल-अज़्हा की सूरत में तमाम दुनिया के मुसलमान अपने अपने मक़ाम पर जानवर की कुरबानी करते हैं और खुदा को गवाह बनाकर उस स्पिरिट को ज़िन्दा रखने का संकल्प करते हैं। हज और ईदुल-अज़्हा के मौक़े पर जानवर की जो कुरबानी की जाती है, वह दरअस्ल जिस्मानी कुरबानी की सूरत में बामक़सद कुरबानी के संकल्प के समान है। यह दरअस्ल अंदरूनी स्पिरिट का बाहरी प्रदर्शन है- It is an external manifestation of internal spirit . आदमी के अंदर पांच क़िस्म की इंद्रियां ; (senses) पाई जाती हैं। मनोवैज्ञानिक अनुसंधान से पता चला है कि जब कोई ऐसा मामला पेश आये जिसमें इनसान की तमाम इंद्रियां शामिल हों तो वह बात इनसान के दिमाग़ में बहुत ज़्यादा गहराई के साथ बैठ जाती है। कुरबानी की स्पिरिट को अगर आदमी सिर्फ़ अमूर्त रूप में सोचे तो वह आदमी के दिमाग़ में बहुत ज़्यादा नक्श नहीं होगी। कुरबानी इसी कमी को पूरा करती है। जब आदमी अपने आपको वक्फ़ करने के तहत जानवर की कुरबानी करता है तो उसमें अमली तौर पर उसकी सारी इंद्रियां शामिल हो जाती हैं। वह दिमाग़ से सोचता है, वह आंख से देखता है, वह कान से सुनता है, वह हाथ से छूता है, वह कुरबानी के बाद उसके ज़ायक़े का तजर्बा भी करता है। इस तरह इस मामले में उसकी सारी इंद्रियां शामिल हो जाती हैं। वह ज़्यादा गहराई के साथ कुरबानी की भावना को महसूस करता है। वह इस क़ाबिल हो जाता है कि कुरबानी की स्पिरिट उसके अन्दर भरपूर तौर पर दाखि़ल हो जाए। वह उसके गोश्त का और उसके खून का हिस्सा बन जाए।
Posted on: Tue, 09 Jul 2013 11:27:48 +0000

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