#7268 "मैं दिल्ली की एक आम - TopicsExpress



          

#7268 "मैं दिल्ली की एक आम लड़की हूँ जो की यहाँ के एक लोकप्रिय अख़बार में रिपोर्टर का काम करती है। मुंबई की रिपोर्टर बहना जो की मेरे ही उम्र की है, उसके साथ जो हुआ उसे सुन कर काफी बुरा लगा। इसके बारे में बहुत कुछ लिखा गया, बहुत कुछ कहा गया पर मैंने जो कुछ गौर किया मैं उसके बारे में कुछ कहना चाहती हूँ। इस घटना के बाद हर जगह ये खबर इस तरह से छप के आई की ""मुंबई की रिपोर्टर की कुछ लड़कों ने मिल कर इज्ज़त लुटी""। पर ये इज्ज़त होती क्या है? मेरी राय इस बात पर समाज के ठेकेदारों से काफी अलग है। बचपन से ही हम लड़कियों को ये सिखाया जाता है की ""इज्ज़त हमारा गहना होती है, इसे हमेसा संभाल कर रखो""। पर क्या ये इज्जत बस अपने आप को कुछ लफंगों से उम्र भर बचा के, अपने आप को परदे में रख लेना! ये है? अगर किसी ने बलात हम पर आक्रमण कर के हमारे शरीर को दर्द दे दिया, तो क्या इस से हमारी इज्ज़त चली गयी? बलात्कार की शिकार लड़की को समाज हमेशा ये ताना देता है की उसकी इज्ज़त लुट ली गयी? क्या शरीर को ये दर्द पहुचना, इज्ज़त लुट जाना है? मुझे तो नहीं लगता ऐसा। समाज ये नहीं देखता की उस लड़की के मन को कितना गहरा घाव लगा है। शरीर के जख्म तो कुछ दिनों में ही भर जाते हैं, पर ये मन पे लगे जख्म!! ये तो वो जख्म होते है जो लम्बे समय तक पीछा नहीं छोड़ते। मेरी नज़रों में इज्ज़त तो वो है जो आप अपने आप को देते हैं। अपने प्रति आपका आत्मसमान, ये होती है इज्ज़त। सिर्फ शरीर पर लगे घाव को लेके कहना की इज्ज़त चली गयी, मेरी नज़रों में कहीं से भी सही नहीं है। इज्ज़त तो मेरी तब जा सकती है, यदि मैं खुद से नज़रें ही ना मिला पाऊँ। अगर किसी ने बलात मुझे अकेला देख कर मेरे शरीर को नुकसान पहुचाया, तो इसमें मेरी इज्ज़त कहाँ से चली गयी? मैंने तो अपनी तरफ से पूरा प्रयास किया उस जानवर से बचने का, पर अगर वो मुझसे बल में मजबूत निकला और मुझे चोट पहुचने में कामयाब रहा तो इसमें मेरी इज्ज़त कहाँ से चली गयी? इज्ज़त तो मेरी तब जाती, यदि मैं बिना संघर्ष किये हथियार दाल देती। आज भी हर दिन मैं अपने काम के सिलसिले में बाहर निकलती हूँ। कई बार अकेले जाना होता है, रात के अंधेरों में भी पर मैं इन बातों से कभी नहीं डरती की समाज के ठेकेदारों की नज़र में मेरी जो ""इज्ज़त"" है, वो कभी जा भी सकती है। भगवान ना करे मुझे ऐसा दिन कभी देखना पड़े, पर हाँ अगर ऐसा दिन आया भी तो मैं अपने तरफ से पूरा संघर्ष करुँगी। अगर मैं ना भी बच पाई, तो भी वो लोग मेरे शरीर को सिर्फ चोट पहुचने में कामयाब हो पाएंगे, मेरी इज्ज़त लुटने में नहीं। क्यूंकि मेरी इज्ज़त तो मेरे पास है, मेरी सोच में है, मेरे स्वाभिमान में है और वो मुझसे कोई नहीं छीन सकता। कोई भी नहीं ।" female delhi Admin --- Must read (y) :(
Posted on: Sun, 01 Sep 2013 08:18:55 +0000

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