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टैग्स: मुजफ्फरनगर| सांप्रदायिक दंगा| पश्चिमी यूपी| मुसलमान| विश्व हिन्दू परिषद्| बीजेपी| कवाल ई-मेलराय देंप्रिंटअअअ कवाल में उबाल के बाद आगजनी कवाल, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले का एक छोटा-सा गांव. मुख्य द्वार पूरी तरह से बंद है. पुलिस ने बैरिकेडिंग कर रखी है, बख्तरबंद गाडिय़ां, पीएसी, आरएएफ और यूपी पुलिस के आला अधिकारी पूरे अमले के साथ 100 मीटर की दूरी पर तैनात हैं. जवान लगातार गश्त कर रहे हैं. अधिकांश घरों के मुख्य दरवाजे पर ताले लटके हैं. कभी सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कवाल गांव में पसरे सन्नाटे को सुरक्षा बलों के जूतों की आहट ही तोड़ पा रही है. दोपहर के करीब डेढ़-पौने दो बजे हैं, यह वही वक्त है जब चंद रोज पहले 27 अगस्त को छेडख़ानी के आरोप के बाद कवाल की जुमा मस्जिद के आगे चौराहे पर दो युवकों ने एक युवक शाहनवाज उर्फ कल्लू पर धारदार हथियार से हमला कर मरणासन्न कर दिया. उन दो युवकों—गौरव और सचिन—को वहां भीड़ ने ईंट-पत्थरों और हथियारों से मार दिया. इस ट्रिपल मर्डर पर पुलिस ने फौरी कर्रवाई की, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सचिन और गौरव के साथ हुई बर्बरता का पता चलने पर लोग भड़क उठे. डीएम कौशल राज शर्मा कहते हैं, 'बर्बर हत्या से लोगों की भावना भड़की." देखते ही देखते मामले ने सांप्रदायिक संघर्ष का रूप ले लिया. इस घटना के बाद से कवाल और मलिकपुरा गांव में मातम पसरा है. कवाल से मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग पलायन कर सुरक्षित ठिकानों पर जा पहुंचे हैं तो गांव में रहने वाले परिवारों ने मुख्य दरवाजे पर ताला लगा रखा है. दोनों गांवों में पसरा सन्नाटा स्पष्ट कर रहा है कि हालात सामान्य नहीं हैं. कवाल में उबाल के बाद 30 अगस्त को मुस्लिम सभा लेकिन सांप्रदायिक तनाव केवल कवाल और मलिकपुरा में ही नहीं, बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है. खुफिया विभाग की रिपोर्ट पर प्रमुख सचिव (गृह) आर.एम. श्रीवास्तव की ओर से अलर्ट जारी किया गया है. कवाल में युवती से छेड़छाड़ की घटना के अलावा मेरठ जोन में पिछले दो महीने में ऐसी 19 घटनाएं हो चुकी हैं. शामली में वाल्मिकी समुदाय और मुसलमानों के बीच झ्ड़प में एक व्यक्ति की जान चली गई. राज्य सरकार खुद कबूल कर चुकी है कि मौजूदा शासन में अब तक सांप्रदायिक संघर्ष की 25 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं. शहरों और कस्बों से तनाव अब देहातों में फैल रहा है, जिससे स्थिति के भयावह होने की आशंका है. मुजफ्फरनगर में ही दो हफ्ते पहले सोरम में दंगे हुए थे, लेकिन पथराव के बाद मामला थम गया. कवाल की घटना ने आग में घी का काम किया है और आसपास के इलाकों के साथ समूचे पश्चिमी यूपी में इसकी प्रतिक्रिया लगातार सामने आ रही है. कवाल के उबाल के बाद कार पर गुस्सा उतारता एक युवक कवाल में क्यों मचा बवाल गौरव और सचिन मलिकपुरा के रहने वाले थे, जबकि शाहनवाज कवाल का. लेकिन आपस में जुड़े दोनों गांव का मुख्य रास्ता एक ही है. इसी रास्ते से पढऩे के लिए जा रही गौरव की बहन को कथित तौर पर शाहनवाज ने छेड़ा तो गुस्से में गौरव ने अपने ममेरे भाई सचिन के साथ मिलकर उस पर हमला बोल दिया. लेकिन गांव में अमन-चैन बहाल करने के लिए बनाई गई पीस कमेटी के सदस्य शमीम अख्तर के मुताबिक, बाजार में गौरव और शाहनवाज की साइकिल भिड़ जाने की वजह से बहस हो गई थी, बाद में गौरव वापस पांच लोगों के साथ आया और शाहनवाज पर चाकू से हमला कर उसे गिरा दिया. उसकी वहीं मौत हो गई थी, तो चौराहे पर भीड़ ने गौरव और सचिन को घेर लिया, जबकि बाकी तीन भाग गए. गौरव-सचिन के परिजनों ने एफआइआर में छेडख़ानी की घटना दर्ज कराई है. हालांकि सीओ जे.आर. जोशी कहते हैं, 'पहले कभी छेडख़ानी की शिकायत नहीं आई. यह रंजिश और वर्चस्व की लड़ाई थी. दोनों तरफ से सात-सात लोग नामजद हैं." कवाल में उबाल के बाद फंसे लोग पोस्टमार्टम रिपोर्ट से और बढ़ा तनाव हालांकि जिलाधिकारी शर्मा के मुताबिक, 'यह छेड़छाड़ की घटना थी जिसमें दो लड़कों ने एक को मारा और भीड़ ने उन दोनों को मार दिया. लेकिन इसमें दो समुदायों के लोग होने की वजह से मामला सांप्रदायिक हो गया." लेकिन 28 अगस्त को पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गौरव-सचिन की बर्बरता से हत्या के खुलासे ने माहौल को और भी तनावपूर्ण बना दिया. शवों को दाह-संस्कार के लिए रखते ही 2-3 ट्रैक्टर-ट्रॉली निकलकर गांव की ओर पहुंची और जुमा मस्जिद से लेकर चौराहे तक की दुकानों-घरों में तोडफ़ोड़ करते हुए आगे बढ़ीं. प्रशासन को उम्मीद थी कि दाह-संस्कार समाप्त होने के बाद भीड़ वापस जाएगी, लेकिन अचानक हुए हमलों को रोकने में पुलिस नाकाम रही. हालांकि गांव में तैनात पीएसी के जवानों ने भीड़ को खदेड़ दिया. फिर दोपहर में शाहनवाज का शव कवाल पहुंचा और उसे दफनाने के दौरान नारेबाजी हुई. कवाल में उपद्रव करते युवक पंचायत पर पहरे से बढ़ा रोष अगले दिन 29 अगस्त को घटनास्थल के नजदीक गली में दो समुदायों के बीच पत्थरबाजी की घटना हुई. लेकिन सांप्रदायिकता की आग कवाल से मुजफ्फरनगर शहर तक पहुंच चुकी थी. धारा 144 लागू होने के बावजूद 30 अगस्त को प्रशासन ने मुस्लिम समुदाय की सभा होने दी. डीएम शर्मा सफाई देते हुए इंडिया टुडे से कहते हैं, 'उस अनुमति का गलत इस्तेमाल हुआ. बीएसपी सांसद कादिर राणा, विधायक और कांग्रेस के नेताओं ने स्टेज बनाकर भाषण देना शुरू कर दिया. स्थिति को संभालने के लिए मुझे खुद वहां आना पड़ा क्योंकि भीड़ मेरे कार्यालय तक मार्च करके आने वाली थी, जिससे शहर में तनाव और बढ़ सकता था. लेकिन इस घटना पर कुछ लोगों ने दुष्प्रचार किया कि सत्ताधारी पार्टी के दबाव में प्रशासन ने मुसलमानों की सभा होने दी." लेकिन 31 अगस्त की जाट समुदाय की पंचायत को अनुमति नहीं मिली थी. इस सभा को रोकने के पीछे डीएम दलील देते हैं, 'सभा से दिक्कत नहीं थी, लेकिन जिस तरह 28 अगस्त को दाह संस्कार के बाद भीड़ उग्र हुई थी, उसी तरह पंचायत के बाद भीड़ कोई भी मोड़ ले सकती थी." एहतियातन पुलिस ने 30 अगस्त को ही कवाल गांव की ओर जाने वाले तीनों रास्तों की बैरिकेडिंग कर फोर्स तैनात कर दी. लेकिन 31 अगस्त को भीड़ पहले खेतों से जानसठ रोड पर आने लगी. डीएम के मुताबिक, भीड़ का कोई नेता नहीं था, इसलिए विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और बीजेपी के कुछ विधायकों ने मंच पर कब्जा जमा लिया. इसी बीच एक कार भीड़ में किसी बाइक से छू गई. जिसके बाद भीड़ ने कार में बैठे बच्चे और महिला की फिक्र किए बिना तोड़-फोड़ कर कार को आग के हवाले कर दिया. हालांकि तब तक पुलिस कार से उस परिवार को सुरक्षित निकालने में सफल हो चुकी थी. डीएम बताते हैं कि दुर्भाग्य से उस कार में बैठा परिवार अल्पसंख्यक समुदाय का था. प्रशासन ने 30 अगस्त को मुजफ्फरनगर और 31 अगस्त को नंगला मंदौड़ में हुई सभा में शामिल नेताओं पर धारा 144 तोडऩे और सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे के लिए मामला दर्ज कर लिया है. अफवाहों को पंख, मीडिया की भूमिका कवाल की घटना के बाद अफवाहों को ऐसे पंखलगे कि आग शहर से बाहर फैलने लगी. हालांकि एसएसपी(अब मुजफ्फरनगर से हटा दिए गए) सुभाष चंद्र दुबे कहते हैं, 'मुट्ठी भर असामाजिक तत्व सामाजिक सौहार्द बिगाडऩे में लगे हैं. लेकिन हमने पर्याप्त संख्या में मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया है. साथ ही बीजेपी के एक विधायक संंगीत सोम ने एक पाकिस्तानी वीडियो को कवाल मर्डर बताकर प्रसारित किया है, जिनके खिलाफ 153 ए, 420 और आइटी एक्ट 66ए के तहत मुकदमा दर्ज हो गया है और जल्द ही उनकी गिरफ्तारी होगी." दुबे कहते हैं, ' चुनावी साल में कुछ लोग फायदा उठाना चाहते हैं और स्थानीय प्रिंट मीडिया भी अफवाहों को तरजीह दे रहा है, क्योंकि उनके राजनैतिक हित किसी न किसी दल से जुड़े हैं." कवाल में उबाल के बाद 31 अगस्त को जाट सभा बदलने लगी राजनैतिक फिजा इस घटना के बाद मुजफ्फरनगर की राजनैतिक फिजा पूरी तरह से बदलने लगी है. भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के खिलाफ नारेबाजी हो चुकी है, तो केंद्रीय नागर विमानन मंत्री अजित सिंह की खामोशी ने जाट समाज को आक्रोशित किया है. 31 अगस्त की सभा में बीजेपी नेताओं ने कब्जा जमा लिया. जबकि सपा संतुलित रुख अपना रही है. पीस कमेटी के सदस्य शमीम कहते हैं, 'अगर सियासी लोगों ने हिस्सेदारी नहीं की तो माहौल सुधर जाएगा, वरना गांव इससे उबरने वाला नहीं है." डीएम का कहना है कि ईद के बाद से सियासी दल छेडख़ानी की घटनाओं को सांप्रदायिक रंग देने में लगे हैं, ताकि आने वाले लोकसभा चुनाव में सियासी लाभ लिया जा सके. उनके मुताबिक, जिले में हत्या और छेड़छाड़ जैसी घटनाएं सामान्य हैं, लेकिन उसे कभी सांप्रदायिक रंग नहीं दिया गया. मुजफ्फरनगर के डीएम कहते हैं, 'राजनैतिक दलों के घुसने की वजह से सांप्रदायिक तनाव बढ़ा है." कवाल की घटना के विरोध में जिस तरह 31 अगस्त की पंचायत को बीजेपी ने हाइजैक किया और भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत के खिलाफ नारेबाजी हुई, उससे पश्चिमी यूपी का समीकरण बदलता दिख रहा है. लोकसभा चुनाव की आहट और बीजेपी से नरेंद्र मोदी को पार्टी का चेहरा बनाए जाने के बाद से सियासी माहौल बदल रहा है. पश्चिमी यूपी में करीब 22 फीसदी मुसलमान मतदाता हैं, जो चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इस इलाके से लोकसभा की 26 सीटें हैं, जिसमें बीजेपी के पास 6, बीएसपी के पास 7, सपा के पास 4, कांग्रेस के पास 3 और आरएलडी के पास 5 सीटें हैं और एक निर्दलीय है. लेकिन बीजेपी और सपा अब इस इलाके में खास फोकस कर रही हैं. सपा ने अपनी कार्यकारिणी की बैठक अचानक हरिद्वार की बजाए आगरा में करना तय किया है तो बीजेपी मथुरा में कार्यकारिणी की बैठक करने जा रही है. जानकारों के मुताबिक, दोनों पार्टियों की रणनीति का केंद्र अब पश्चिमी यूपी हो गया है. छेडख़ानी, गोकशी, डीजे बजाने जैसी घटनाओं या अफवाहों से बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों के बीच तनाव की वजह से पूरा पश्चिम उत्तर प्रदेश सांप्रदायिकता की बारूदी सुरंग पर खड़ा है, जो कभी भी फट सकता है. < और भी... aajtak.intoday.in/story/muzffarnagar-riot-1-741414.html
Posted on: Tue, 10 Sep 2013 15:44:14 +0000

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