बादल फटना (क्यूलोनिवस) - TopicsExpress



          

बादल फटना (क्यूलोनिवस) हमेशा प्राक्रतिक कारणो से नही होता है ,बादलो से बरसात होती है , और बरसात की एक दर होती है ,बादलो की दर थोड़ी बहुत बदलती है,....दस गुना तक नही ? जब बादल भारी मात्रा में आद्रता (यानि पानी ) लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वो अचानक फट पड़ते हैं, यानि संघनन बहुत तेजी से होता है...या जब कोई गर्म हवा का झोंका ऐसे बादल से टकराता है तब भी उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है ! उदाहरण के तौर पर २६ जुलाई २००५ को मुंबई में बादल फटे थे, तब वहां बादल किसी ठोस वस्‍तु से नहीं बल्कि गर्म हवा से टकराए थे! केदारनाथ में पिछले 5,000 सालो में कभी बादल नही फटे , अचानक आज कैसे ? 20 एम एम तक बरसने वाली बरसात का लेवल 300 एम एम से ज्यादा कैसे हो गया ? जब पहाड़ो के बीच में बादल टकराते है उससे बरसात होती है , पर दस गुना पानी के लिये दस गुना ज्यादा बादलो की जरूरत पड़ती है जो बस इस 'आधुनिक विज्ञान' से संभव है ......प्राक्रतिक कारण से संभव ही नही है ? ***************** क्या कोई बता सकता है की जिस समय बादल फटे , ठीक तभी कुछ ही घंटो के अंतराल में बाँध से पानी क्यों छोड़ा गया ?? बदलो का संघनन (क्यूलोनिवस) बहुत छोटे से एरिया में होता है इतने बड़े एरिया में नही ,, संभव ही नही है ! पहले बादल फटे केदारनाथ में , फिर बाँध से पानी छोड़ा गया मन्दाकिनी और अलकनंदा नदी के बाँधो से ? मन्दाकिनी और अलकनंदा में बादल नही फटा था फिर बाँधो से पानी क्यों छोड़ा गया था , जनता को चेतावनी क्यों नही दी गयी ? ....."क्या केदारनाथ का 'सरकारी' तंत्र सोता रहा , या पहले से ही चंपत हो गया था " ?
Posted on: Tue, 25 Jun 2013 15:40:20 +0000

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