मेरे हमदम मेरे दोस्त: हज़ार सलाम रिश्तों में नामालूम खुशी और उदासी एक साथ देखता रहता हूँ. कभी कभी खीज भी. खलिश भी. काफ़ी दोस्त जो हम निवाला हम पियाला रहे. इल्म गाहों में कॉलेज और यूनिवर्सिटी में. न जाने कितने दोस्तों को फेस बुक बुक पर ही मिला. तबियत खराब हो उनकी तो कुछ दर्द खुद को महसूस होता है. कुछ रिश्ते हमने चुने नहीं. मिले. मां बाप ने दिए थे. कभी उनका बोझ उठाये नहीं उठता. कभी कंधे झुक जाते हैं. कभी महीनों बीमार रहो पर खबर कछुए की चाल को भी मात दे देती है. पर जो रिश्ते मीरास में, विरासत में नहीं मिले पूछ बैठते हैं “कहाँ हो ठीक तो हो”. जी उकता गया अब बोझ उठा कर. सोचता हूँ नए परिवार का हिस्सा बनूँ. जहाँ दोस्त और उनकी महफ़िल हो. दर्द आये तो दवा साथ चले. खुशी आये तो तराने साथ गूंजे. महफ़िल-यारां में दफ़न होना मंज़ूर लेकिन रिश्ते जिनकी कहानी खून में लिखी है उसका कफ़न मंज़ूर नहीं.
Posted on: Thu, 19 Sep 2013 07:10:02 +0000
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