शायद ही धरती पर कोई और ऐसा देश हो जहां इतनी धार्मिकता बिखरी हो हर तरफ. नदी सागर तट, पर्वत, जंगल रेगिस्तान और मैदान, भरे पड़े हैं सारे पर्यटन स्थल मंदिरों, मस्जिदों, पूजा अर्चना इत्यादि से. व्रत उपवास त्योहारों से भरा पडा है हमारा सामाजिक जीवन. और शायद ही कोई और ऐसा समाज हो जहां इतनी बेईमानी, अपराध, अत्याचार, अनाचार और पाखण्ड से भरे हुए जीवन जीने वाले लोगों की बहुतायत हो. बात क्या है आखिर? जिस तरह हमारा राजनैतिक नेतृत्व पतन के गर्त में चला गया है, शायद उसी तरह हमारा धार्मिक नेतृत्व भी असफल और अयोग्य साबित हुआ है हमें इस स्थिति को बदलना होगा. राजनैतिक क्रांति की बातें और प्रयास तो फिर भी होते रहते हैं लेकिन अब हमें एक बड़ी धार्मिक क्रांति की आवश्यकता है!
Posted on: Wed, 25 Sep 2013 06:46:11 +0000
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