Salman Rizwi ki kalam se : इशरत तेरे लहू - TopicsExpress



          

Salman Rizwi ki kalam se : इशरत तेरे लहू पे जिनकी बिसात चमकी | वो गद्दियों के ताजिर चेहरे छुपा रहेंहैं | जिनके दिलों में ज़र्रा बच्चे पे न रहम था | जग में वो औरतों को जीना सिखा रहें हैं | जो लोग बच्चियों को देवी समझ रहे थे | बस नाम में फ़रक पर क्या क्या बता रहें हैं आतंक की किसी भी मज़हब में न जगह है | ये कहके लोग उसको मुस्लिम बता रहें हैं | हर सिम्त हर फ़िज़ाँ से जब शोरे हक़ उठा है | उस दम शरीर क़ातिल ख़ुद को बचा रहें हैं | उफ़ हाय रे मुसीबत क़ातिल बना मसीहा | सबसे फ़रेब करके दिल्ली दिखा रहें हैं | मुस्तक़बिलों से माएँ बच्चों के डर गयीं हैं | जब भी कभी जुमें को टोपी लगा रहें हैं | ये कौन लोग हैं वो जिनकी फ़क़त है चाहत | जो नौजवाँ लहू पर गद्दी सजा रहें हैं | दुनियाँ ये जानती है हर ख़ून बोलता है | बस इसलिए फ़क़त वो हर सच छुपा रहें हैं | जो हक़ लहू ज़मीं पर नाहक़ गिरा दिया है | उसकी महक से क़ातिल सोनें न पा रहें हैं | जिनकी कोई फ़िकर न दुनियाँ के काम आयी | ख़ुद हर सिमत में ख़ुद का डंका बजा रहें हैं | जो लोग हैं ख़मोंशाँ घर में छुपे हुयें हैं | वो झूठ की ज़बाँ पर क़ुर्बान जा रहें हैं | इल्ज़ाम वो लगायें इस्मत शहीद करके | जो औरतों को ख़ुद से सीता बता रहें हैं | हर सिम्त से सियासत यूँ मुस्कुरा के बोली | मासूम गद्दियों पर बलिदान पा रहें हैं | =================== -सलमान रिज़वी- Admin : Arif Khan
Posted on: Sat, 06 Jul 2013 18:41:24 +0000

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