तीर्थयात्रा को भौंडा पर्यटन बनाने वाले लोगों का कहना है कि अब उत्तराखण्ड नहीं आयेंगे, भाई आना भी मत यह कोई पिकनिक स्पाट नहीं है, जिन परिस्थितियों को आप विकट बता रहे हो, उसका यहां का आम मानस अभ्यस्त है, मानसून हमारे घरों में झूले नहीं लगवाता, हम कुदाले लेकर नाली ठीक करने जाते हैं, सावन का महीना और यहां का पवन का शोर हमें हरषाता नहीं डराता है। जिन रास्तों को खतरनाक बताकर मीडिया देश की जनता को डरा रहा है, इन्हीं दुर्गम रास्तों पर हमारे बच्चे रोज स्कूल जाते हैं, हमारी मां-बहनें जानवरों के चारा और खाने के लिये राशन लेकर आती हैं। तुम लोग छः महीने में जितना गनदा जाते हो, उतना तो हमारे खेतों में अन्न नहीं होता, तुम्हारे लिये रेस्क्यू आपरेशन हुआ सेना मंगाई गई, लेकिन मेरे गांवों की सुध कोई नहीं ले रहा, हमें इनकी भी मदद नहीं चाहिये, हम फिर से बना लेंगे, संवार लेंगे अपने गांव, क्योंकि हमें उजड़्कर बसने की आदत है। हां तुम मत आना मेरे पहाड़, यहां की पवित्रता को नष्ट करने, पालीथीन छोड़ जाने और टनों गनदा छोड़ जाने के लिये, बिल्कुत मत आना, कभी मत आना।
Posted on: Fri, 28 Jun 2013 10:19:29 +0000
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